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________________ राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १४५ शताब्दियों के अनेक जैन लेखक अपनी तिथियाँ इसी संवत् में प्रदान करते है । मेरुतुङ्ग विक्रम और शक संवत् में १३५ वर्षों का स्पष्ट अन्तर बतलाता है जिसका अनुमोदन अल्बीरूनी तथा नवीं और ग्यारहवीं शताब्दियों के अभिलेख करते हैं जो विक्रम और शक संवतों का साथ-साथ वर्णन करते हैं। जैन लेखकों में वीर संवत् का भी प्रचलन है। परन्तु राजशेखर सूरि ने अधिकाधिक विक्रम संवत्सर और कहीं-कहीं वीर संवत् का प्रयोग किया है। उसने प्रबन्धकोश में घटनाओं का वर्णन करते हुए 'कालक्रमेण' ( कालक्रम से ) शब्द का कई बार प्रयोग किया है जो उसकी काल-अवधारणा का द्योतक है। प्रबन्धकोश में दो स्थलों पर जो ऐतिहासिक क्रम प्रदान किया गया है, वह राजशेखर की कालक्रमीय अवधारणा को पुष्ट करता है। वस्तुपाल प्रबन्ध में वह कहता है कि संसार में स्त्री-जाति ही धन्य है जिनके गर्भ से जिन, चक्रवर्ती, अर्द्धचक्रवर्ती, नल, कर्ण, युधिष्ठिर, विक्रम, सातवाहनादि उत्पन्न हुए। ग्रन्थान्त में सपादलक्षीय चाहमान वंशावली में ३७ राजाओं का क्रमानुसार उल्लेख है जिसमें भी ऐतिहासिक क्रम उचित है ।। कालक्रम केवल संवत्सर या तिथि नहीं है अपितु यह काल-मापन भी है। 'यह महत्वपूर्ण घटनाओं को कालानुसार व्यवस्थित करने वाला और उनके मध्यान्तरों को सुनिश्चित करने वाला शास्त्र है जो इतिहास का ढाँचा तैयार करता है। राजशेखर ने अपने इतिहास १. वही, पृ० ५६-५७ । २. दे० 'विचारश्रेणी'; अल्बीरूनी का भारत, ( सम्पा० ) सचऊ, लन्दन, १९१४; अध्याय २, पृ० ४९; इपि० इण्डि०, १९ वाँ, पृ० २२; उत्तर भारत का अभिलेख, सं० १३४; ८६२ ई० के देवगढ़ जैन स्तम्भ अभिलेख के लिये दे० इपि• इण्डि०, चतुर्थ, सं० ४४, पृ० ३०९-३१० । ३. प्रको, पृ० ७६ व पृ० ७७ । ४. वही, पृ० १०१ । ५. वही, पृ० १३३-१३४ । ६. रेनियर : हिस्टरी : इट्स परपज ऐड मेथड, लन्दन, १९५६, प. ११२, पृ० १७६ । ૧૦ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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