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राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १४३.
वाहन और सातवाहन के क्रम में सातवाह्न का होना यह विरुद्ध नहीं. हैं | भोजपद पर बहुत से लोग भोजत्व को, जनक पद पर बहुत से . लोग जनकत्व को प्राप्त हुए, ऐसी रूढ़ि है ।" राजशेखर ने तो. विरोधी - परम्परा का यहाँ तक निर्वाह किया है कि जो वृत्तान्त जैनसम्मत नहीं थे उसने उनका भी वर्णन किया है और इस सम्बन्ध में वह कहता है कि देव - जातीय नाग के साथ मानव का विवाह होना असम्भव है । अतः इस सम्बन्ध में यह जानना आवश्यक है कि परम्पराओं के भाव भिन्न-भिन्न हो सकते हैं क्योंकि राजशेखर की यह स्वीकारोक्ति है कि कुछ परम्पराएँ सर्वथा भ्रान्त या विरोधी हो सकती हैं ।
इस प्रकार राजशेखर ने विविध परम्पराओं को आत्मसात् करके प्रबन्धकोश का प्रणयन किया है क्योंकि ऐतिहासिक विद्वत्ता तो परम्पराओं एवं मापदण्ड की खोज में लीन रहती है जिसके अनुसार ही ग्रन्थ की रचना और उस रचना का मूल्यांकन होता है । ( ३ ) कालक्रम
परम्परा की तरह कालक्रम भी इतिहास-दर्शन की एक कसौटी है क्योंकि कालक्रम इतिहास का नेत्र है । यह समय का एक मापदण्ड १. इति चिरत्नगाथाविरोधप्रसङ्गात् । न च सातवाहनक्रमिकः । सातवाहन इति विरुद्धम् | भोजपदे बहूनां भोजत्वेन, जनकपदे बहूवां जनक्त्वेन रूढत्वात् । वही ।
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राजशेखर ने वकचूल प्रबन्ध में 'रूढ़' शब्द का प्रयोग भी इसी प्राचीन परम्परागत अर्थ में किया है 'तीर्थतया च रूढं तत ।' वही, पृ० ७६ । वास्तव में जनरीतियों ( Folk ways ) और रूढ़ियों ( Mores ) में अन्तर होता है । जनरीतियाँ समाज में मान्यता प्राप्त व्यवहार करने की पद्धति हैं और रूढ़ियाँ ऐसी जनरीतियाँ हैं जिन्हें समूह कल्याणकारी, उचित व उपयोगी समझता है तथा उनके उल्लंघन पर दण्ड देता है । २. ' इयं च कथा जैनानां न सम्मताः, देविजातीयैर्नागैः सह मानवानां विवाहासम्भवत: ।' वही, पृ० ८८ ।
३. डाइचेज डेविड : क्रिटिकल एप्रोचेज टू लिट्रेचर, लौंगमैन्स, १९६४, पृ० ३२१ ।
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