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________________ १४२ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन पर पूर्वकाल का वृत्तान्त प्रस्तुत किया है और कहा है कि सम्प्रति थोड़ा सुना हुआ विद्यमान है । ' हरिहर प्रबन्ध में तो राजशेखर चुनौतीपूर्ण शब्दों में कहता है कि यदि विश्वास न हो तो परिपाटी के अनुसार सुनिये | आभड़ प्रबन्ध में वह आलोचना करता है कि अजयपाल प्राचीन कालीन चैत्यपरिपाटी का उपहास करने लगा । सातवाहन प्रबन्ध में प्रबन्धकार राजशेखर कहता है कि कुपित राजा के आदेश पर शुद्रक को सूली: पर चढ़ाये जाने के लिये देश-रीति के अनुसार शकट ( रथ ) आदि से ले जाया गया ।" उसी प्रबन्ध में राजशेखर दो पुनीत सामाजिक परम्पराओं का उल्लेख करता है । एक तो जब रानी चन्द्रलेखा के पुत्र उत्पन्न हुआ, राजा को चारों ओर से 'वर्द्धापनिका' ( वंशवृद्धि - प्रशंसा - बधाई ) प्राप्त हुई । दूसरे जब विवाह हो रहा था तब वर-वधू के बीच देश-परम्परा से यवनिका डाली गयी ।" राजशेखर द्वारा ग्राह्य परम्परा का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण सातवाहन प्रबन्ध में प्राप्त होता है, जहाँ वह भ्रान्त या विरोधी परम्परा को भी ग्रहण करता है क्योंकि राजशेखर की इतिहासप्रियता का प्रमाण विरोधी परम्पराओं को भी अपने ग्रन्थ में समाहत करना है । उसी सातवाहन - प्रबन्ध में वह न केवल सातवाहनों की परम्परा की चर्चा करता है अपितु एक सातवाहन राजा के समीकरण का प्रयास भी करता है । उसकी स्वीकारोक्ति है कि उसका वर्णन प्राचीन गाथा से भिन्न है । वह कहता है कि “ऐसा प्राचीन गाथा के विरोध प्रसङ्ग से है । सातवाहन के पश्चात् सात १. 'सम्प्रति अल्पश्रुतं वर्तते ।' वही, पृ० ५३ । २. 'यदि तु प्रत्ययो नास्ति तदा परिपाट्या श्रूयन्ताम् ।' वही, पृ० ५९ । ३. ' पूर्वमेते चैत्य परिपाटीमकार्षुरित्युपहासात् ।' वही, पृ० १८ । तदनु देशरीति ४. 'ततो नृपतिस्तस्मै कुपित: शूलारोपणमाज्ञापयत् । वशात्तं शकटे शाययित्वा। वही, पृ० ७० । " .. ५. ' चतस्रोऽपि वर्द्धापनिका दत्ताः क्ष्मापालेन ।' वही, पृ० ७३ । ६. 'देशानुरोधाद्वधूवरयोन्तराले जवनिका दत्ता ।' वही, पृ० ७४ । ७. ' सोऽन्यः सातवाहन इति सम्भाव्यते ।' वही, पृ० ७४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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