SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १३५ गुजरात के साथ आप अपने जीवनपर्यन्त सन्धि करें। इसकी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप सुल्तान ने तीर्थों के निर्माणार्थ सहायता दी और वस्तुपाल द्वारा प्रदत्त आतिथ्य के कारण बहरामशाह और वस्तुपाल के बीच सन्धि हो गयी। निर्माण कार्य में विलम्ब और वास्तु दोष के कारण . वस्तुपाल प्रबन्ध में राजशेखर कहता है कि वास्तुकार शोभनदेव ने स्तम्भ ऊँचा होने में विलम्ब के चार कारण प्रस्तुत किये हैं ( १ ) मण्डप गिरि-परिसर में है। (२) शीत बढ़ जाती है। ( ३ ) प्रातःकाल बनाना कठिन होता है। ( ४ ) मध्याह्न में घर जाकर स्नान और भोजन करना पड़ता है।' राजशेखर वास्तु-दोष के सात कारणों को क्रम से संख्या देते हुए गिनाता है और अर्बुदगिरि के नेमि-प्रासाद के वास्तु-दोष का विश्लेषणात्मक कारणत्व प्रदान करता है १. प्रासाद की अपेक्षा सीढ़ियाँ छोटी हैं। '२. स्तम्भ के ऊपर बिम्ब अपमान का द्योतक है। ३. द्वार-स्थान में व्याघ्र की मूर्ति होने से अल्प पूजा की जायेगी। ४. जिन-मूर्ति के पृष्ठभाग में पूर्वजों की मूर्ति स्थापना वंशजों की ऋद्धिनाश की सूचिका है। ५. आकाश में जैन-मुनि की मूर्ति स्थापना दर्शन-पूजा की अल्पता का सूचक है। ६. काले रङ्ग की गृहली ( शुभ-चिह्न ) मंगलकारी नहीं है। .. ७. भार-पट्ट ( धरन) बारह हाथ लम्बा है जो कि कालानुसार ऐसा नहीं होना चाहिए, यह विनाश का सूचक है। १. 'देव ! गुजरधरया सह देवस्य यावज्जीवं सन्धिः स्तात् ।' ___ वही, पृ० १२० । २. 'स्वामिनि ! गिरिपरिसरोऽयम् । शीतं स्फीतम् । प्रातर्घटनं विषमम् । मध्याह्नोद्देशे तु गृहाय गम्यते, स्नायते, पच्यते, भुज्यते । एवं विलम्बः स्यात् ।" वही; पृ० १२२ । ३. वही, पृ० १२४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy