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________________ लेखकीय जैन-ग्रन्थ उत्तरपुराण के अनुसार सीता मन्दोदरी के गर्भ से उत्पन्न हुई थी, किन्तु अनिष्टकारिणी जान उसे एक मंजूषा में मिथिला भेजकर भूमि में रोप दिया गया, जहाँ दैवयोग से हल जोतते समय जनक को वह मिल गयी। उसी प्रकार प्रबन्धकोश का यामिनियों के हृद-प्रदेश दिल्ली में जन्म ( १३४९ ई० ) हुआ था, किन्तु वहाँ अनिष्ट समझ उसे गुजरात भेज दिया गया जहाँ के जैन-भण्डारों में उसकी पाण्डुलिपियाँ मिल गयीं। यह प्राचीन व मध्यकालीन भारतीय इतिहास को जानने के लिए एक दिशा-निर्देशक ग्रन्थ सिद्ध हुआ। प्रबन्धकोश के ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर भारत के प्रमुख आचार्यों, कवियों, राजाओं एवं गृहस्थ श्रावकों के इतिहास की पुनर्रचना और प्रबन्धकार के इतिहास-दर्शन की रूपरेखा तैयार की जा सकती है। __ प्रबन्धकोश के उद्धरणों का परवर्ती जैन-प्रबन्धों, यहाँ तक कि सोलहवीं शताब्दी के बल्लालकृत भोजप्रबन्ध, में प्रयोग हुआ है। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य से ही ए० के० फोबस, ब्यूलर, याकोबी, पीटर्सन, स्टीवेन्सन आदि यूरोपीय विद्वानों ने इसके अध्ययन की आवश्यकता अनुभव की थी। सर्वप्रथम १८५६ में फोर्बस ने "रासमाला" में और गत शताब्दी के अन्त में ब्यूलर ने हेमचन्द्राचार्य की जीवनी में इसका प्रभूत प्रयोग किया। भारतीय विद्वानों में सर आर. जी० भण्डारकर, विजयधर्मसूरि, मणिलाल ननुभाई द्विवेदी, प्रो. कापड़िया, मुनि जिनविजय, वेलणकर, ए. एन. उपाध्ये, के. पी. जैन, हीरालाल जैन, प्रभृति दिग्गजों ने जैन प्रबन्धों के संग्रह, संकलन अनुवाद और आलोचन किये। १९३५ में प्रबन्धकोश की महत्ता समझते हुए जिनविजय ने इसके ऐतिहासिक विवेचन की आयोजना बनायी, किन्तु उसकी क्रियान्विति आज लगभग साठ वर्ष गुजर जाने पर भी नहीं हो सकी है। आर० एस० त्रिपाठी, गुलाबचन्द्र चौधरी, ए० के० मजुमदार, बी० जे० साण्डेसरा जैसे विद्वानों ने राजशेखर को इतिवृत्तकार मान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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