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________________ राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १३३ आन्तरिक मतभेद से सम्बन्धित थे जिनका एक सामान्य कारण था विरोधी या असन्तुष्ट व्यक्ति का मुसलमानों से मिल जाना । राज्यउत्तराधिकार के कारण राजा जयचन्द्र और रानी सूहवदेवी में मतभेद हो गया । सूहवदेवि (पुनर्धृता) के पुत्र को गहड़वाल राज्याधिकार न देकर सुवंशी मेघचन्द्र को दिया गया। इस कारण सूहवदेवि क्रुद्ध हो गयी और उसने तक्षशिलाधिपति सुरत्राण को काशी विनष्ट करने के लिये निमन्त्रण भेज दिया ।" राजा हृदय में हार गया । यह नहीं ज्ञात है कि तदनन्तर जयचन्द्र मारा गया अथवा कहीं गया अथवा मर गया या गंगा में गिर गया । यवनों ने नगरी हस्तगत कर लिया । इस प्रकार प्रबन्धकोश में कारणत्व की न केवल विभिन्नता है अपितु विविधता भी है । बोजबीन सुरत्राण के अभियान के कारण राजशेखर का प्रथम मोजदीन सुरत्राण इल्तुतमिश ( १२१० - ३५ ई० ) है । राजशेखर की दृष्टि में उस सुल्तान के गुजरात अभियान का एक साधारण कारण था म्लेच्छों की दुर्जेयता । प्रबन्धकोशकार इस कारणत्व को ऐतिहासिक तथ्यों की सहायता से पुष्ट करते हुए कहता है कि " म्लेच्छों द्वारा गर्दभिल्ल की गर्दभी-विद्या सिद्ध तिरस्कृत हो गयी है । प्रतिदिन सूर्यमण्डल से निकले अश्वों से रची राजपाटिका ( राजकीय शोभायात्रा ) थी । उसके कर्ता शिलादित्य को भी पीड़ित किया । सात सौ योजन के स्वामी जयन्तचन्द्र का भी नाश किया । बीस बार बाँधे गये सहावंदीन सुल्तान के विजेता पृथिवीराज भी बाँधे गये । इसलिए ( वह ) निश्चय ही दुर्जय है ।" ----- प्रथम मोजबीन की पराजय के कारण प्रथम मोजदीन की पराजय का कारण वस्तुपाल की सामरिक - १. प्रको, पु० ५७ ३२७ ई० पू० देशद्रोही आम्भी ने भी विदेशी आक्रान्ता सिकन्दर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया था । २. 'राजा हृदयेहारयामास । ततो न ज्ञायते किं हतो गतो मृतो वा । गङ्गाजले पतत् । यवनैर्लाता पूः ।' वही, पृ० ५८ । ३. दे० पूर्ववणित अध्याय ५, ऐति० तथ्य और उनका मूल्यांकन ( क्रमशः ) | ४. !... पृथिवीराजोऽपि बद्धः । तस्माद् दुर्जया अभी ।' प्रको, पु० ११७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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