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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
पूर्वनियोजित योजना के अनुसार कुमारपाल ने शत्रु द्वारा नियुक्त व्याघ्रराज ( भरकट ) को मल्लयुद्ध में भूमिसात् कर दिया।
(५) दोनों ओर से युद्ध की तैयारियाँ होने लगी। कुमारपाल ने पार्षिण सेना ( मण्डल-सिद्धान्त ) का उपाय किया । आनाक ने दस लाख पदिक, तीन लाख अश्वारोही तथा पचास हाथी के साथ प्रस्थान किया। आनाक ने द्रव्य-बल ( उत्कोच ) द्वारा कुमारपाल के नड्डलीय, केल्हण आदि सामन्तों में भेद पैदा कर अपने पक्ष में कर लिया। आनाक ने उन्हें विश्वासघात का एक ही मन्त्र दिया-"युद्ध के लिए तैयार रहो, परन्तु युद्ध न करो।" इन 'तटस्थ' और 'उदासीन' राज्यों के रहस्य को कुमारपाल भी न जान सका। इसलिये चौलुक्यों एवं चाहमानों के बीच संघर्ष हुआ। चाहड़ का शत्रुपक्ष में जाने का कारण
चाहड़ कुमार भी शत्रुपक्ष में मिल गया। परन्तु अर्णोराज पर कुमारपाल की विजय एक ऐतिहासिक तथ्य है।' कुमारपाल अपनी बहन की प्रतिज्ञा पूरी करना चाहता था और आनाक की कातर-दृष्टि देखकर उसे तीन दिनों बाद मुक्त कर दिया। प्रभाचन्द्र चाहड़ को सिद्धराज का पुत्र मानता है किन्तु राजशेखर के अनुसार चाहड़ मालवा का राजकुमार था। जब राजपुत्र चाहड़कुमार ने प्रधानों से राज्य माँगा तब उन्होंने उसे दिया नहीं क्योंकि वह ( चाहड़ ) दूसरे वंश का था। इस प्रकार क्रुद्ध होकर चाहड़ आनाक का सेवक बन गया। इस सन्दर्भ में राजशेखर का वर्णन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह तर्कसंगत कारणत्व प्रस्तुत करता है। गाहड़वाल और सेनवंश में संघर्ष के कारण
वाराणसी के जयचन्द्र गाहड़वाल और लक्षणावती के लक्ष्मणसेन के बीच संघर्ष का कारण लक्षणावती के दुर्भेद्य दुर्ग और विशाल सेना की चर्चा थी जिसे सुनकर जयचन्द्र ने दुर्ग-विजय की प्रतिज्ञा की, जो १. वादनगर प्रशस्ति, वेरावल प्रशस्ति तथा कुमारपाल का चित्तौड़गढ़
अभिलेख ( वि० सं० १२०७ ) इस विजय की पुष्टि करते हैं । २. प्रको, पृ० ५२।
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