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राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १२७
जाने के बाद कुमारपाल ने सपादलक्ष के मदान्ध राजा अर्णोराज से युद्ध करने का निश्चय किया। मेरुतुङ्ग के अनुसार सिद्धराज का दत्तकपुत्र चाहड़ कूमारपाल की अवज्ञा करके सपादलक्ष चला गया। वहाँ के राजा और सामन्तों को उत्कोच देकर मिला लिया और तब वे विशाल सेना के साथ गुजरात की सेना की ओर बढ़े।' किन्तु जयसिंहरि, जिनमण्डन और राजशेखर को युद्ध के इन कारणों से सन्तुष्टि न हो सकी।
प्रबन्धकार की पैनी दृष्टि ने चौलुक्यों और चाहमानों के बीच संघर्ष के कतिपय रोचक कारणों को भी खोज निकाला।
(१) राजशेखर कहता है कि चौलुक्य कुमारपाल की बहन देवल्लदेवी का विवाह चाहमानवंशीय शाकम्भरी नरेश आनाक से हुआ था। एक बार वे दोनों शतरंज खेल रहे थे। आनाक अकस्मात् चिल्ला उठा'मारयमुण्डिकान् पुनर्मारय मुण्डिकान्' । मुण्डिका का अर्थ पैदल भी हुआ और यह शब्द गुजरात के चालुक्यों के क्षौर किये हुए सिर से भी जुड़ा हुआ है। इस व्यंग्य पर रानी कुपित हुई और आनाक से बहस करने लगी। इस कारण राजा आनाक ने क्रुद्ध होकर रानी पर पदप्रहार किया और रानी ने आनाक को दण्ड दिलाने की प्रतिज्ञा की।
(२) रानी अविलम्ब चौलुक्य नरेश के पास गयी और उसने अपमान तथा अपनी प्रतिज्ञा को बतलाया। तब कुमारपाल ने एक मन्त्री को आनाक के यहाँ वृत्तान्त जानने के लिए भेजा।
(३) मन्त्री ने आनाक राजा की एक दासी से गुप्त सूचना प्राप्त की कि आनाक ने व्याघ्रराज को कुमारपाल के वध के लिये नियुक्त किया है । इस प्रकार मन्त्री ने शत्रुगृह के मर्म को जान लिया।
(४) मन्त्री ने चतुर यामलिकों को कुमारपाल के पास उक्त सूचना प्रदान करने के लिये भेजा। कुमारपाल सावधान हो गया। १. "सपादलक्ष भूमीशमर्णोराजं मदोद्धतम् । विग्रहीतुमनाः सेनामसावेनाम
सज्जयत् ।" प्रभाच, २२ वाँ, पद ४१७ । २. प्रचि, पृ० ७९, श्लोक १३२ । ३. दे० कुमारपालभूपालचरित, चौथा, पद १७२-२१२; कुमारपालप्रबन्ध
३९; प्रको, पृ० ५०-५२ ।
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