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१२६ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन 'पण्डित की अवज्ञा' बतलाया।
बप्पभट्टिसूरि प्रबन्ध में राजशेखर ने एक समाजशास्त्रीय समस्या पारिवारिक कलह का कारणत्व दारिद्रय नहीं अपितु चरित्र बतलाया है । सुयशा क्षत्राणी की सौत ने उस पर पर-पुरुष दोष आरोपित कर घर से निष्कासित करवा दिया। स्वाभिमान के कारण उसने श्वसुरकुल और पितृकुल का त्याग कर दिया। उसी प्रबन्ध में लिखा है कि आम राजा ने एक नारी के साथ पाप का आचरण किया। यहाँ पर राजशेखर ने आम राजा के पाप-प्रायश्चित के विविध विकल्पों को प्रस्तुत कर दिया है। हेमसूरिप्रबन्ध में सूरि ने कुमारपाल के पूर्वभव का इतिवृत्त सुनाया जिसमें से राजशेखर ने एक विचित्र सामाजिक कारणत्व ढूंढ़ निकाला कि पूर्व-जन्म में गर्भाघात करने के कारण सिद्धराज के पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। इस प्रकार राजशेखर ने प्रबन्धकोश में अधिकतर बातों का सकारण विवेचन किया है। विक्रमादित्य प्रबन्ध में बेताल ने एक कामकथा सुनायी जिसमें एक अति विचित्र एवं विनोदपूर्ण सामाजिक समस्या उत्पन्न हो गयी थी। ब्राह्मण पुत्री द्वारा काष्ठ-भक्षण कर लेने का कारण यह था कि उसके पिता ने उसे अलग-अलग गाँव के चार वरों को दिया था, जिसके फलस्वरूप विवाद उत्पन्न हो गया था। चौलुक्य-चाहमान संघर्ष के कारण
हेमचन्द्र के अनुसार अपनी स्थिति सुदृढ़ करके अर्णोराज ने कुमारपाल पर आक्रमण कर दिया। प्रभाचन्द्र के मतानुसार राजा बन
१. "पण्डितेन मय्यवज्ञा दधे", वही, पृ० ६० । २. प्रको, पृ० २७ । ३. “इदं जनङ्गमीसङ्गपापं काष्ठानि भक्षयामि ।" वही, पृ० ३९ । ४. “सह सिद्धेशेनापि वैरकारणमुपलब्धम् । पूर्वभवे गर्भाघातान्न सिद्धराजस्य
पुत्रः ।" वही, पृ० ५४ । ५. "सा चतुर्णा वराणां दत्ता पृथक पृथक् ग्रामे । चत्वारो प्यागताः ।
विवादो जातः ।" प्रको, पृ० ८० । ६. द्वयाश्रय, १६ वाँ, पद १४ । .
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