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राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १२५ 'क्यों घटा' बतलाना जरूरी होता है।' इतिहासकार लगातार प्रश्न पूछता रहता है, क्यों? वह मूल प्रश्न 'क्यों' के अधिकाधिक उत्तर इकट्ठे करता रहता है। अतः इतिहास का अध्ययन कारणों का अध्ययन है। क्योंकि', 'कारण से', 'परिणामस्वरूप', 'फलतः', 'तब', 'तत्पश्चात्', 'इसी बीच' आदि कारणत्व के अस्त्र हैं जिन्हें इतिहासकार अपने हाथों में लिये रहता है। वह तो कारणों की विविधता से सम्पकित रहता है। कारणत्व का तात्पर्य कारणता या कार्य-कारण सिद्धान्त होता है। राजशेखर ने कारण के लिये प्रायः 'हेतु', 'कारण', 'क्योंकि' आदि शब्दों का प्रयोग किया है। कारणत्व की विविधता राजशेखर के इतिहास-दर्शन की अद्भुत विशेषता है। ईर्ष्या, संघ या गच्छ-बँटवारे, संघर्ष-युद्ध, सन्धि-वार्ता, रोष-असन्तोष, सामाजिक समस्या ( पारिवारिक कलह ), विदेशी आक्रमण, निर्माण-कार्य में विलम्ब, वास्तुदोष, वैमनस्य आदि के कारण न केवल विविध हैं प्रत्युत् भिन्न-भिन्न हैं जिससे कारणत्व में एक-रसता नहीं आने पाती है और वे अधिक विश्वसनीय प्रतीत होते हैं ।
राजशेखर ने भद्रबाहु-वराह प्रबन्ध में 'कथं', 'किमेतत् ?' शब्दों को कारणत्व के वाहक रूप में प्रयुक्त किया है। उसने जीवदेवसूरिप्रबन्ध में प्रासाद-दोष का कारण स्त्री-शल्य का होना बतलाया है। संघ और गच्छ विरोध के कारणों पर भी प्रकाश डाला गया है। मल्लवादि प्रबन्ध में माता ने बालक को संघ छोटा होने का कारण बौद्धों की प्रगति बतलाया। हरिहर प्रबन्ध में राजशेखर ने लिखा है कि धवलक्क में वीरधवल द्वारा हरिहर के स्वागत सत्कार किये जाने के कारण राजकवि सोमेश्वर की ईर्ष्या बढ़ गयी। सोमेश्वर की दुर्भावना से हरिहर क्रुद्ध भी हुए। हरिहर ने सोमेश्वर के दूषित होने का कारण १. वाल्श, डब्ल्यू० एच० : ऐन इन्ट्रोडक्शन टू फिलॉसफी, लन्दन, १९५६,
पृ० १६; ह्वाइहि, पृ० ८७; हिहिरा, पृ० ३६२ । २. प्रको, पृ० ३,४, २२ । ३. वही, पृ० ८। ४. वही, पृ० २२ । ५. प्रको, पृ० ५८।
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