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________________ अध्याय-७ राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम राजशेखर के इतिहास-दर्शन में स्रोत तथा साक्ष्य का अध्ययन कर लेने के बाद कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम पर प्रकाश डालना आवश्यक हो जाता है। कारणत्व 'कारणत्व' में कारणों की क्रमबद्धता का भाव निहित रहता है। 'कारणत्व' की समस्या पर इतिहासकार के रुख की विशेषता यह होती है कि वह एक ही ऐतिहासिक घटना के कई कारण सामने रखता है। किसी एक कारण के प्रभाव पर केन्द्रित होने से लोगों को सावधान करने के लिए हर सम्भव उपाय करने चाहिए, क्योंकि प्रभाव में अन्य कारणों का भी हाथ होता है जो मुख्य कारण के साथ मिला होता है। इसका उदाहरण वस्तुपाल प्रबन्ध में स्पष्ट दीख पड़ता है । वस्तूपाल ने रैवतक पर से तीर्थयात्रा-कर का उन्मूलन इस कारण किया कि उसे लोकहित साधना था और इस लोकहित-साधन के लिये उसने छः विविध लोकहित-साधक कार्य भी किये। अतः यहाँ पर लोकहित-साधक कार्यों में कारण व प्रभाव भी संयुक्त है । सच्चा इतिहासकार न केवल कारणों की सूची बनायेगा, बल्कि उन्हें क्रमबद्ध और व्यवस्थित करने की बाध्यता भी महसूस करेगा। इसलिए कारणत्व अनावश्यक कारणों के परित्याग में सहायक होता है। परन्तु इतिहासकार का प्रमुख कार्य केवल विगत घटनाओं की खोज करना नहीं होता है। 'क्या घटा' कहना ही यथेष्ट नहीं है अपितु १. कार, ई० एच० : पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ७६ । २. दे० प्रको, पृ० १२०-१२१ तथा दे० पूर्ववणित अध्याय ५, ऐति० तथ्य वस्तुपाल प्रबन्ध भी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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