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राजशेखर का इतिहास-दर्शन : स्रोत एवं साक्ष्य । १२३
गये तब संघ के सेवक भाव-विह्वल होकर कहने लगे कि हम आपके अनुयायी हैं, आप हमें क्यों छोड़ते हैं ? हमारे जैसे सेवकों के अभाव में आपकी ही हानि होगी। आपके चले जाने के बाद राजा पर हम ही प्रभावशाली होंगे। इस भाव को बल्लाल इस प्रकार कहता है कि राजा सेवकों पर प्रसन्न होकर भी मात्र मान ( प्रतिष्ठा ) देते हैं, किन्तु सेवकगण सम्मान पाने पर प्राणों को देकर उपकार करते हैं।
इस प्रकार प्रबन्धकोश के साक्ष्य जिनमण्डन के कुमारपालचरित्र, पुरातन-प्रबन्धसंग्रह, कुमारपालचरितसंग्रह के पाँचों प्रबन्ध-ग्रन्थों, रत्नमन्दिरगणि की उपदेशतरंगिणी, शभशीलगणि कृत पञ्चशतीप्रबोध-सम्बन्ध एवं कई भोजप्रबन्धों में पाए जाते हैं जिनसे अन्य प्रबन्ध-ग्रन्थों की अपेक्षा प्रबन्धकोश की ख्याति अधिक प्रतीत होती है तथा राजशेखर के इतिहास-दर्शन की मान्यता बलवती होती है।
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