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________________ १२२ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन के उपाख्यान दिये हुए हैं । सम्भवतः इन ग्रन्थकारों ने भी प्रबन्धकोश ली थी । से सहायता १५२५ ई० में सहजसुन्दर ने रत्नश्रावक - प्रबन्ध की रचना की थी । ऐसा प्रतीत होता है कि सहजसुन्दर ने अपने ग्रन्थ के लिए सामग्री प्रबन्धकोश से ही उधार ली है । यद्यपि सहजसुन्दर की कृति 'रत्न श्रावकप्रबन्ध' नामाभिधान से प्रबन्ध प्रतीत होती है तथापि फतेहचन्द बेलानी ने इसे कथाचरित वर्ग में रक्खा है । यहाँ तक कि बल्लालकृत भोजप्रबन्ध ( १६वीं शताब्दी ) में भी प्रबन्धकोश का साक्ष्य ग्रहण किया गया है । उक्त भोजप्रबन्ध में स्पष्टतः तीन श्लोक ऐसे हैं जिन्हें बल्लाल ने अक्षरशः प्रबन्धकोश से उद्धृत किया है और चौथे का भाव ग्रहण किया है ।" अतः स्पष्ट है कि बल्लालकृत भोजप्रबन्ध में प्रबन्धकोश के श्लोकों का साक्ष्य मिलता है । पहला श्लोक विक्रमादित्य की दान- प्रसिद्धि से सम्बन्धित है जिसका भावार्थ है कि आठ करोड़ सुवर्ण ( मुद्रा ), तिरानबे तौल मोती, मदगन्धलाभी भौरों का क्रोध सहने वाले ( अर्थात् मदोन्मत्त ) पचास हाथी, लावण्यमयी कटाक्ष नेत्रों वाली सौ वाराङ्गनाओं ( गणिका) जो पाण्ड्यनृप ने दहेजस्वरूप दण्ड ( भेंट ) दिया था ( विक्रमादित्य ने ) उसे ही वैतालिक ( बेताल ) को अर्पित कर दिया । दूसरा श्लोक राजा को सम्बोधित करके कहा गया है कि "आपने यह अपूर्व धनुविद्या कहाँ से सीखी है कि मार्गणों ( एक अर्थ बाणों, दूसरा अर्थ याचकों ) का समूह आता है और गुण ( एक अर्थ मन्त्र, दूसरा अर्थ शौर्यादि गुण ) आकाश में चले जाते हैं ।" तीसरा श्लोक भी राजा की प्रशंसा में है । " ( आप ) सर्वदा सबको देने वाले हैं, लोग ऐसी मिथ्या स्तुति करते हैं । शत्रुगण आपकी पीठ को नहीं प्राप्त कर सके हैं और पटनारियाँ ( वेश्याएँ ) आपके वक्ष स्थल को ।" चौथे श्लोक में बल्लाल ने राजशेखर का भाव ग्रहण किया है । राजशेखर कहता है कि एक बार जब बप्पभट्टिसूरि नगर के बाहर चले १. दे० बेलानी : जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकार, पूर्वनिर्दिष्ट, पृ० ४३-४५ । २. दे० प्रको, श्लोक ३०, ४७, ५० व ७४ बल्लालकृत भोज-प्रबन्ध, श्लोक २३१, ३११, ३१३ व ३१७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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