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________________ १२० 1 प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन प्रबन्धकोश से एक पद्य उद्धृत किया गया है जिसका भावार्थ है कि साहस से कार्य करना चाहिये । कुमारपालप्रबोध-प्रबन्ध में प्रबन्धकोश का एक साक्ष्य और उद्धृत किया गया है जिसमें स्वयम्भू की स्तुति की गयी है ।' अतः इन साक्ष्यों से प्रमाणित होता है कि प्रबन्धकोश की विद्वत समाज में मान्यता थी और उसे उद्धृत करना एक गौरव की बात थी, जो प्रबन्धकोश की ऐतिहासिकता और प्रामाणिकता को सिद्ध करती है | चतुरशीतिप्रबन्धान्तर्गत आये हुए 'कुमारपालदेव प्रबन्ध' में दो पद ऐसे हैं, जो प्रबन्धकोश से अक्षरशः उद्धृत हैं । प्रथम पद्य तो बहुउद्धृत है जिसको प्रबन्धकोश से कुमारपालदेवचरित्र, सोमतिलककृत कुमारपालदेवचरित और कुमारपालप्रबोध-प्रबन्ध तथा सोमप्रभाचार्यकृत कुमारपाल - प्रतिबोध में भी उद्धृत किया जा चुका है । प्रबन्धकोश से उद्धृत द्वितीय पद्य में मधुर ध्वनि की प्राकृतिक महिमा का बखान किया गया है ।' सोमप्रभाचार्यकृत कुमारपाल प्रतिबोध का भी एक प्राकृत पद ऐसा है, जो प्रबन्धकोश से शब्दशः अवतरित किया गया है जिसका तात्पर्य है कि हे माता ! तेरी अपुष्पित पुत्री का पुष्पदन्त पति है । मैंने उसे कड़ा प्रमाण नवीन साली ( धान्य ) की काँजी दी है। रत्नमन्दिरगणि ने भोज - प्रबन्ध ( १४६० ई० ) की रचना में प्रबन्धकोश से सहायता ली होगी, क्योंकि रत्नमन्दिरगणि कृत उपदेशतरंगिणी ( १४६२ ई० ) में प्रबन्धकोश का साक्ष्य पाया जाता है । रत्नमन्दिरमणि ने वस्तुपाल की प्रशंसा करते हुए प्रबन्धकोश के उस श्लोक को उद्धृत किया है जिसका भावार्थ है कि आज इस वन से कोई कल्पवृक्ष का हरण कर रहा है ।" १. कुपाच, पृ० ६६; प्रको, पृ० ५०; कुपाच, पृ० ९९, प्रको, पृ० ५१; कुपाच, पृ० १४, प्रको, पृ० १८ । २. कुपाच, पृ० ११२ - ११३, पद ५ प्रको, पृ० १७, पद ३६; कुपाच, पृ० ११४- ११७ प्रको, पृ० ६३, पद ८१ । ३. कुपाच, पृ० १२४, पद २२; प्रको, पृ० १२, पद १८ । ४. प्रको, पृ० ५९, श्लोक १६८ तथा उपदेशतरंगिरणी, पृ० ७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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