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________________ ११८ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन एक अत्यन्त प्रसिद्ध प्राकृत पद ( १७/३६ ) को कुमारपालचरितसंग्रह में चार स्थानों में अक्षरशः उद्धृत किया गया है ।' सोमतिलकसूरि ने भी प्रबन्धकोश को साक्ष्य माना है । सोमतिलकसूरिकृत 'कुमारपालचरित' के अन्तिम ५०० श्लोकों में कुमारपाल के राजकीय जीवन का वर्णन है जिसमें 'प्रबन्धकोश' में उपलब्ध सामग्री का सार दिया हुआ है ।' प्रबन्धकोश में कुमारपाल से सम्बन्धित सामग्री हेमसूरि, हरिहर आभड़ और वस्तुपाल प्रबन्धों में प्राप्त होती है। इसके बाद शत्रुञ्जय, उज्ज्यन्त आदि की तीर्थयात्रा और सोमनाथ में कुमारपाल के साथ जाकर हेमचन्द्र द्वारा शिव पूजा आदि पशु-वध निषेधाज्ञा का वर्णन कुमारपालचरित में मिलता है । अन्त में हेमचन्द्र के स्वर्गवास और उसके पश्चात् छः महीने में कुमारपाल के दिवंगत होने का भी उल्लेख सोमतिलकसूरि ने प्रबन्धकोश से ही लिया हुआ है, ऐसा प्रतीत होता है । 'कुमारपालप्रबोधप्रबन्ध' की रचना १४०७ ई० में प्रबन्धचिन्तामणि, प्रबन्धकोश आदि जैसे कतिपय पुरातन प्रबन्धों के आधार पर की गई है । कुमारपालप्रबोधप्रबन्ध के लगभग प्रारम्भ में जो पद्य है, वह प्रबन्धकोश से शब्दश: उद्धृत किया गया है, जिसका भावार्थ यह है कि " गुजरात का यह राज्य वनराज प्रभृति राजा द्वारा जैन मन्त्रसमूह से स्थापित किया गया है । उसके साथ द्वेष करने वाले कभी प्रसन्न नहीं रह सकते ।" आगे प्रबन्धकोश का साक्ष्य मिलता है कि याचक, वंचक, व्याधि, पंचत्व और मर्मभाषक ये पाँचों प्रायः योगियों १. पुन्ने वाससहस्से सयंमि वरिसाण नवन वइकलिए । हेही कुमरनरिन्दो तुह विक्कमराय सारिच्छों ॥ दे० प्रको, पृ० १७ / ३६ तथा कुपाचस, पृ० ५/१३२, १३/१४४, ४७/३९। २. मुनि जिनविजय ( सम्पा० ) किञ्चित प्रास्ताविक, कुपाच, पृ० ३ । ३. कुपाच, पृ० २० - २१, पृ० ३३ । ४. गूर्जराणामिदं राज्यं वनराजात् प्रभृत्यपि । स्थापितं जैनमन्त्रस्तु तद्वेषी नैव नन्दति ॥ Jain Education International कुपाच, पृ० ३६, पद ६ प्रको, पृ० १२८, पद ३३५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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