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राजशेखर का इतिहास-दर्शन : स्रोत एवं साक्ष्य [ ११७
अपने ही ढंग से कहा है और ऐसा करते हुए परस्पर विरोधी बातों की तनिक भी परवाह नहीं की है। उत्तराधिकार के सम्बन्ध में हेमचन्द्र, कुमारपाल और आभड़ के बीच मन्त्रणा हुई। बालचन्द्र द्वारा अजयपाल का कान भरा गया था तथा हेमचन्द्र के स्वर्गारोहण के ३२वें दिन अजयपाल ने कुमारपाल को विष देकर मार डाला। राजशेखर के इन वृत्तान्तों को जिनमण्डनगणि और अबुल फजल ने भी लिपिबद्ध किया है।
पुरातनप्रबन्धसंग्रह में कई प्रकरण अत्यन्त पुरातन हैं। कुछ प्रकरण ऐसे हैं जो प्रबन्धकोश में हैं। इनकी छानबीन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कम से कम तीन प्रबन्धों ( पादलिप्ताचार्य-प्रबन्ध, रत्नश्रावक-प्रबन्ध और वस्तुपाल-प्रबन्ध ) को राजशेखर के प्रबन्धकोश से ग्रहण किया गया है।
राजशेखर के प्रबन्धकोश की प्रसिद्धि इतनी अधिक थी कि पुरातनप्रबन्धसंग्रह के उक्त तीन प्रबन्धों में से 'रत्नश्रावक-प्रबन्ध' में ग्रन्थकार ने प्रबन्ध के अन्त में स्पष्ट लिख भी दिया है कि उक्त रत्नश्रावक-प्रबन्ध को हमने लिखकर समाप्त किया जो मलधारीगच्छीय श्रीराजशेखरसूरि द्वारा विरचित है।
अज्ञातकर्तृक कुमारपालदेवचरित, सोमतिलककृत कुमारपालदेवचरित, पुरातनाचार्य संगृहीत कुमारपालप्रबोध-प्रबन्ध, चतुरशीतिप्रबन्धान्तर्गत कुमारपालदेव-प्रबन्ध तथा सोमप्रभाचार्यकृत कुमारपालप्रतिबोध जैसे पाँचों ग्रन्थों ने कुमारपालचरित-संग्रह में प्रबन्धकोश को साक्ष्य मानकर उसके कई श्लोकों को उद्धृत किया है। प्रबन्धकोश के
१. दे० ब्युलर, हेमजी : पृ० १३ । २. कुमारपालप्रबन्ध (१४३६ ई० ) पृ० ११३; आइन-ए-अकबरी,
द्वितीय, पृ० २६३ । ३. "रत्नश्रावकप्रबन्धो विसजिताः (तः ९ ) श्री राजशेखरसूरिभिर्मलधारि
गच्छीयविरचितः ।" विस्तृत विवेचन के लिए दे० जिनविजय : प्रास्ताविक वक्तव्य; पुप्रस, पृ० ४ व टि०, जहाँ पर जैन विद्वान् ने स्पष्ट रूप से कहा है कि पादलिप्ताचार्य-प्रबन्ध और रत्नश्रावक-प्रबन्ध, राजशेखरसूरि के प्रबन्धकोश से गृहीत हैं ।
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