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________________ ११६ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन महत्त्व उतना ही है जितना किसी गुप्तचर ( डिटेक्टिव ) अथवा किसी अधिवक्ता के लिए है, जिनको अपने तथ्यों को स्थापित करने के लिए साक्ष्यों को एकत्र करना पड़ता है। अधिवक्ता अपने साक्ष्य के लिए जीवित व्यक्तियों को प्रस्तुत करता है जबकि इतिहासकार ग्रन्थों का प्रमाण प्रस्तुत करता है। अतः इतिहास में किसी व्यक्ति के कार्यों अथवा किसी घटना के घटित होने के सम्बन्ध में जो प्रमाण प्रस्तुत किये जाते हैं, उन्हें साक्ष्य कहते हैं। राजशेखर के साक्ष्यों को दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है - (१) प्रबन्धकोश में साक्ष्य और (२) प्रबन्धकोश के साक्ष्य । 'प्रबन्धकोश में साक्ष्य' वे प्रमाण हैं जिन्हें राजशेखर ने अन्य ग्रन्थों से अपने ग्रन्थ में दिये हैं । 'प्रबन्धकोश के साक्ष्य' उसके वे उद्धरण या अंश हैं जिन्हें अन्य ग्रन्थकारों ने अपने-अपने ग्रन्थों में प्रयुक्त किये हैं। अतएव पहले प्रकार के साक्ष्य प्रबन्धकोश के पूर्ववर्ती ग्रन्थों से सम्बन्धित हैं तथा दूसरे प्रकार के साक्ष्य प्रबन्धकोश के परवर्ती ग्रन्थों से । प्रबन्धकोश के दूसरे प्रकार के साक्ष्य के रूप में सर्वप्रथम मान्यता प्रदान करने वाले ग्रन्थों में कुमारपालचरित्र' का नाम आता है। अपनी पूर्ववर्ती कृतियों का उपयोग करने में अभ्यस्त जिनमण्डन ने अपने महत्त्व के ग्रन्थ कुमारपालचरित्र में प्रबन्धकोश का सर्वप्रथम प्रयोग किया है, यद्यपि जिनमण्डन ने राजशेखर का नामोल्लेख नहीं किया है। अतः कुमारपालचरित्र में प्रबन्धकोश के साक्ष्य पाये जाते हेमचन्द्र के बाल्य-जीवन के सम्बन्ध में कुमारपालचरित्र के रचयिता ने तो प्रबन्धकोश के तत्सम्बन्धी वृत्तान्त' को खूब सजाकर १. दे० जिनमण्डनकृत कुमारपालचरित्र, पृ० २५ जिसमें प्रको, पृ० ४७ के पैरा ५५-५६ को उद्धृत किया गया है। इसे कुमारपाल प्रबन्ध भी कहा गया है। २. प्रको, पृ० ४७; पैरा ५५-५६ का साक्ष्य, दे० उक्त कुमारपालचरित्र में । ३. प्रको, पृ० ९८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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