SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजशेखर का इतिहास-दर्शन : स्रोत एवं साक्ष्य [ ११५ की परस्पर तुलना की है । राजशेखर को अपने स्रोतों में कहीं-कहीं भिन्न भाव मालूम हुआ है । इस भिन्न भाव के निराकरण का उसके पास न तो कोई साधन था और न उसको उसके निराकरण की कोई आवश्यकता ही थी । उसने केवल इतना ही कहना पर्याप्त समझा कि विद्वान् जैन इसे संगत नहीं मानते हैं ।' राजशेखर की दृष्टि में कुछ ऐतिहासिक तथ्य जैनों से असंगत होते हुए भी उसके द्वारा संकलित और सुसम्प्रदाय द्वारा प्राप्त हुए हैं क्योंकि उसकी दृष्टि में वे तथ्य उचित थे । वत्सराज उदयन की 'यह कथा जैनों को सम्मत नहीं है क्योंकि इसमें जो देवजातीय नागकन्या के साथ मनुष्य का विवाह सम्बन्ध होना बतलाया गया है, वह असम्भव है । केवल सभा में कहने लायक विनोदात्मक होने से हमने 'नागमत' (पुराण) से इस कथा को उद्धृत किया है । ' इस प्रकार राजशेखर अपने स्रोतों के प्रति ईमानदार था । उपर्युक्त अध्ययन में राजशेखर का इतिहास - दर्शन अनुस्यूत है । उसके स्रोतों की व्यापकता इससे सिद्ध होती है कि उसने संस्कृत और प्राकृत ग्रन्थों को, आगम और लौकिक साहित्य को, गुरुओं को, लेख और परम्पराओं को तथा जैन और जैनेतर साधनों को अपना स्रोत मानने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं महसूस की। यहाँ तक कि उसने विज्ञप्तिपत्र, यमल - पत्र और ग्रहण - प्रस्ताव के भी उल्लेख किये हैं । अतः जिस तरह और जिस भावना से राजशेखर ने अपने स्रोतों का उपयोग किया है, उससे वह इतिहासकार कहलाने का अधिकारी हो जाता है । साक्ष्य राजशेखर के इतिहास - दर्शन में स्रोतों का अध्ययन कर लेने के बाद साक्ष्यों का अध्ययन करना आवश्यक है । साक्ष्य किसी घटना का प्रामाणिक ज्ञान प्रदान करते हैं । इतिहासकार के लिए साक्ष्यों का १. “ यन्नासङ्गतवागजनो जैन ।” प्रको, पु० ७४ । २. " इयं च कथा जैनानां न सम्मता, देवजातीयैर्नागैः सह मानवानां विवाहासम्भवतः । विनोदिस भार्हति नागमतादुद्धृत्यात्रोक्ता ।" वही, पृ० ८८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy