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________________ ११४ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन पतिकृत गौड़वहो तथा महामहविजय, श्रीहर्ष विरचित खण्डनखण्डखाद्य तथा नैषध, गाथापञ्चकम्, श्रीधर रचित न्यायकन्दली, वात्स्यायनशास्त्र, वाराहसंहिता आदि महत्त्वपूर्ण अजैन ग्रन्थों को भी अपने इतिहास का साधन बनाया होगा। राजशेखर अपने स्रोतों के प्रति इतना ईमानदार था कि उसने प्रबन्धचिन्तामणि का तो नामोल्लेख किया ही है साथ ही साथ नैषध महाकाव्य के ११वें सर्ग के ६४वें पद को ससन्दर्भ उद्धृत किया है और काव्य की सर्ग तथा पद संख्या भी दी है। इस प्रकार महत्त्वपूर्ण अंशों को उद्धृत करने की परम्परा इतिहासशास्त्र और इतिहासलेखन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मानी जानी चाहिए क्योंकि यह विरचित ग्रन्थ की प्रामाणिकता असन्दिग्ध सिद्ध करती है। क्या एरियन और स्ट्रैबों ने मेगस्थनीज़ की 'इण्डिका' को उद्धृत नहीं किया है ? इसी उद्धरण-परम्परा के फलस्वरूप ही 'इण्डिका' जीवित है। अतः राजशेखर इस उद्धरण-परम्परा का अनुगमन करके एक ओर पूर्व-ग्रन्थों को जीवित रखे हुए हैं और दूसरी ओर प्रबन्धकोश की विश्वसनीयता को द्विगुणित करते हैं। इसके अलावा राजशेखर ने अपने गुरु तिलकसूरि से श्रुत-परम्परा को और अपने विद्वद्गुरु जिनप्रभसूरि के अधीन 'न्यायकन्दली' ग्रन्थअध्ययन एवं उपसम्पदा-ग्रहण को महत्त्वपूर्ण साधन बनाया होगा। अतः यह सही है कि राजशेखर ने अपने प्रबन्धकोश की रचना में कुछ तो प्राचीन चरित-ग्रन्थों एवं प्रबन्ध-ग्रन्थों की सहायता ली और कुछ परम्परा से चली आ रही मौखिक बातों का सहारा लिया । राजशेखर कहता है कि उसके सद्गुरु श्री तिलकसूरि ने समस्त कलाओं को उसके सामने निर्विघ्न उद्घाटित किया क्योंकि श्रुति-सागर से पार लगाने वाले कर्मठगुरु के समीप उस शिष्य ने विनयपूर्वक एवं विधिवत् अध्ययन किया था। इस तरह उसने दोनों प्रकार के स्रोतों १. वक्तुः प्रायेण चरितः प्रबन्धेश्च कायम् । वही, पृ० १। २. "सूरिमें सद्गुरुः श्रीतिलक इतिकलाः स्फोरयत्वस्तविघ्नः'' इह किल शिष्येण विनीतनिनयेन श्रुतजलधिपारङ्गमस्य क्रियापरस्य गुरोः समीपे विधिना सर्वमध्येतण्यम् ।" वही, पृ० १ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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