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________________ राजशेखर का इतिहास-दर्शन : स्रोत एवं साक्ष्य [११३ राजशेखर के उक्त कथन में इतिहास-दर्शन की दृष्टि से पाँच महत्त्वपूर्ण बाते हैं । एक तो उसने जैनेतर महाकाव्य का उल्लेख करके पूर्वाग्रह-विमुखता का परिचय दिया। दूसरे, महाभारत के शान्तिपर्व में भीष्म-युधिष्ठिर-संवाद के महत्त्व को आँकते हुए महाभारत के द्वैपायन ( व्यास ) का नाम बतलाया है। तीसरे, मांस-परिहार का सटीक सन्दर्भ प्रदान किया है, जो शान्तिपर्व के ३२ अधिकारों में २८ वाँ अधिकार है। चौथे, राजशेखर ने सम्बन्धित विषय में महाभारत और शिवपुराण जैसे स्रोतों का तुलनात्मक सन्दर्भ देने का प्रयास किया है। अन्ततः हमें राजशेखर की इतिहासशास्त्रीय दृष्टि का बोध भी होता है क्योंकि उसने 'इतिहासशास्त्रीय' शब्द भी प्रयुक्त किया है। प्रबन्धकोश के कम से कम तीन स्थानों में श्रीमद्भगवद्गीता की झलक मिलती है। बप्पभट्टिसूरिप्रबन्ध में राजशेखर कहता है कि जीर्णमय शरीर छोड़कर मनुष्य नवीन शरीर पुनः प्राप्त करते हैं । वस्तुपाल प्रबन्ध में कहा गया है कि रणस्थल में विजय पर लक्ष्मी प्राप्त होती है और मरने पर स्वर्ग। अतः इस विध्वंसनी शरीर की चिन्ता रणस्थल में मरण के लिए नहीं करनी चाहिए। राजशेखर ने उसी प्रबन्ध में यह भी गीता से ग्रहण किया है कि युद्ध में जय हो अथवा मृत्यु हो, राजाओं का किसी प्रकार का तिरस्कार नहीं होता। अतः राजशेखर ने शिवपुराण, स्कन्दपुराण के प्रभासखण्ड, वाक् १. प्रको, पृ० ४५ । तुलनीय - वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरो पराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही । गीता, २.२२ । २. प्रको, पृ० १२७ । तुलना कीजिये - हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् । तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय ! युद्धाय कृतनिश्चयः ।। गीता, २.३७ । ३. प्रको, पृ० १०५ । तुलना कीजिये - सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयो । ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ।। गीता, २.३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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