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११२ प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
राजशेखर के स्रोतों के सम्बन्ध में, उपर्युक्त ग्रन्थों के अलावा कुछ का पृथक् वर्णन करना आवश्यक है। उदयप्रभसूरिकृत धर्माभ्युदय ( संघपतिचरित्र) (१२२०-३० ई०) में १५ सर्ग हैं और ५२०० श्लोक प्रमाण हैं। इस कथा-काव्य में महामात्य वस्तुपाल की संघयात्रा का प्रसंग बनाकर धर्म के अभ्युदय का सूचन करने वाली अनेक धार्मिक कथाओं का संग्रह है। ऐसा प्रतीत होता है कि राजशेखर ने वस्तुपालतेजपाल प्रबन्ध की रचना करते समय 'धर्माभ्युदय' काव्य से सामग्री अवश्य ग्रहण की होगी। जैन-प्रबन्धों में जिनभद्रकृत प्रबन्धावलि, प्रभाचन्द्रकृत प्रभावकचरित, मेरुतुङ्गविरचित प्रबन्धचिन्तामणि और जिनप्रभसूरिकृत विविध तीर्थकल्प तथा हेमचन्द्र के ग्रन्थों से प्रबन्धकोश में सामग्री ली गयी है। उसने कुछ जैन-प्रबन्धों में से तो अक्षरशः उद्धत भी किया है, अन्य जैन-प्रबन्धों के प्राकृत प्रबन्धों को संस्कृत में अनदित किया है और कुछ का गद्यीकरण तक किया है ।
राजशेखर के इतिहास-दर्शन की यह विशेषता है कि वह कतिपय जैनेतर ग्रन्थों को भी अपना स्रोत बनाता है। उसने ब्राह्मण महाकाव्यों में रामायण व महाभारत से भी विषय-वस्तु ग्रहण की और शान्तिपर्व का तो वह नामोल्लेख भी करता है। उसने रामायण की घटनाओं और पात्रों का वर्णन किया है। साथ ही साथ उसने 'महाजनों येन गतः स पन्था' वाली पंक्ति को महाभारत से उद्धत भी किया है । राजशेखर कहता है, 'दूसरी कथा में शान्तिपर्व में श्रीद्वैपायनोक्त भीष्म-युधिष्ठिर उपदेश प्राप्त होता है। द्वैपायनोक्त बत्तीस अधिकारों में इतिहासशास्त्रीय दृष्टि से अट्ठाईसवाँ अधिकार है मांसपरिहार । शिवपुराण में इसका वर्णन बीच-बीच में आया है।" १. जिरको, पृ० १९५; सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्यांक ४, मुनिचतुर.
विजय जी और पुण्यविजय जी द्वारा सम्पादित, बम्बई, १९४९ । २. दे० प्रको, पृ० ११३ तथा पूर्ववणित अध्याय २, पृ० ५१ । ३. प्रको, पृ०६६, श्लोक १९४ ।। ४. "कथान्तरे शान्तिपर्वाणि श्रीद्वैपायनोक्तभीष्म-युधिष्ठिरोपदेशद्वारा यातं
द्वैपायनोक्तद्वात्रिंशदधिकारमयेतिहासशास्त्रीयाष्टाविंशाधिकारस्थं शिवपुराणमध्यगतं च मांसपरिहार...", प्रको, पृ० ११३ ।
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