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अध्याय - ६
राजशेखर का इतिहास- दर्शन : स्रोत एवं साक्ष्य
प्रबन्धकोश के ऐतिहासिक तथ्यों एवं उनके मूल्यांकन के आलोक में राजशेखर के इतिहास - दर्शन पर प्रकाश डाला जा सकता है । सर्वप्रथम हम इतिहास, इतिवृत्त और इतिहास-दर्शन के अर्थ की विवेचना करेंगे |
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' इति + ह् + आस' इन तीन पृथक् शब्दों का संश्लिष्ट रूप है 'इतिहास' जिसका अर्थ होता है 'निश्चित रूप से ऐसा हुआ। इस व्याख्या के अनुसार, अतीत के जिन वृत्तों के अस्तित्व को हम पूर्ण विश्वास के साथ प्रमाणित कर सके उन्हें इतिहास की श्रेणी में रखा जा सकता है । इस प्रकार अतीत के समाज को मनुष्य के लिए सुबोध बनाना और वर्तमान समाज पर उसकी पकड़ को और मजबूत करना, इतिहास का दुहरा कर्तव्य है । इसीलिए आधुनिक इतिहासकार इतिहास को वर्तमान और अतीत के बीच एक अनन्त वार्तालाप मानता है । परन्तु इतिहासकार का कार्य न तो अतीत से प्यार है और न अतीत से स्वयं को मुक्त रखना है, अपितु अतीत को एक ऐसी कुञ्जी बनाना और हृदयंगम करना है जिससे वर्तमान समझ में आ जाय । अतीत के परिप्रेक्ष्य में वर्तमान को जानने का आशय यह भी है कि वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में अतीत को भी जाना जाय ।
किन्तु इतिहास और इतिवृत्त में समकालिकता और विश्वसनीयता
१. मिश्र, गिरिजाशंकर प्रसाद : प्राचीन भारतीय इति० दर्शन तथा इति० लेखन, इतिहास स्वरूप एवं सिद्धान्त ( सम्पा० ) पाण्डे, गोविन्दचन्द्र, जयपुर, १९७३, पृ० ४६; इसी व्याख्या का गलत उद्धरण दे० चौबे, झारखण्डे : इतिहास - दर्शन, वाराणसी, १९४८, पृ० २ ।
२. कार, ई० एच० : इतिहास क्या है, दिल्ली, १९७९, पृ० २१ । ३. कोशाम्बी, डी० डी० : द कल्चर ऐण्ड सिविलाइजेशन ऑफ ऐन्शियेंट
इण्डिया, लन्दन, १९६५, पृ० १० व पृ० २४ ।
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