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ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन (क्रमशः) [ १०५ चाहता था जिन्होंने गुर्जरधरा को सुरक्षित रखा। त्रिभुवन पाल ने चालुक्य राज्य खोया और स्वयं अप्रसिद्ध रहा । वह धर्म और साहित्य का पोषक भी नहीं था। __ चौथे आरोप के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि यह प्रथम मोजदीन सुरत्राण इल्तुतमिश हो सकता है। जिसने १२३४ ई० में भिलसा जीता, उज्जैन को लूटा और महाकाल मन्दिर की तोड़फोड़ की । सम्भवतः उसने गुजरात पर आक्रमण के लिए कोई छोटी टुकड़ी भेजी हो जिसका वस्तुपाल ने सफलतापूर्वक मुकाबला किया। राजशेखर ने यह नहीं कहा है कि उक्त श्लोक की रचना वस्तुपाल ने की। उसका कहना है कि वीरधवल के निधन के बाद वस्तुपाल ने उक्त श्लोक को पढ़ा । प्रबन्धचिन्तामणि और प्रबन्धकोश में श्लोक एक ही है और निधन के बाद पढ़ा जाता है। अन्तर इतना ही है कि प्रबन्धचिन्तामणि में तेजपाल के मुख से श्लोक कहलवाया गया है, और प्रबन्धकोश में वस्तुपाल से । यह बहुत बड़ा दोष नहीं है।
इस प्रकार वस्तुपाल-प्रबन्ध का सूक्ष्म विवेचन करने पर राजशेखर पर लगे आरोपों का प्रक्षालन हो जाता है तथा प्रबन्धकोश के ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर राजशेखर के इतिहास-दर्शन का द्वार खुल जाता है।
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