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________________ १०४ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन अनुसार अर्णोराज ने कुमारपाल से भीम ( द्वितीय ) तक चौलुक्यों के सामन्त के रूप में शासन किया। मजुमदार के मत के विपरीत समकालिक वसन्तविलास में उल्लेख है कि अर्णोराज ने राजा के पक्ष में रहते हुए राज्य की रक्षा की। अतः अर्णोराज को चौलुक्य कहना और उसके द्वारा गुजरात की सुरक्षा करने के कथन की पुष्टि हो जाती है। मजुमदार का यह कथन कि राजशेखर को वाघेलों के प्रारम्भिक इतिहास का कम ज्ञान था भ्रान्तिपूर्ण है। राजशेखर की इतिहासप्रियता और तथ्यों के प्रति ईमानदारी का प्रमाण उसका यह कथन है --- "ऐसा प्रबन्धचिन्तामणि से ज्ञात होता है। चवित-चर्वण करने से क्या लाभ ? कतिपय नवीन प्रबन्धों को प्रकाशित करता हूँ।" ___ मजुमदार ने प्रबन्धकोश से उद्धरण दिया है- "अर्णोराज के बाद पहले लवण प्रसाद और बाद में वीरधवल राजे हुए।" किन्तु मूल में लिखा है___ "सम्प्रति युवां पिता-पुत्री लवणप्रसाद-वीरधवलौ स्तः ।" अर्थात् इस समय दोनों पिता-पुत्र, लवण प्रसाद और वीरधवल थे। यदि इसे पूर्वोक्त वाक्य के तारतम्य में पढ़ा जाय तो अर्थ निकलेगा कि सम्प्रति लवण प्रसाद और वीरधवल ( गुर्जरधरा को ) सुरक्षा प्रदान करने वाले थे। मजुमदार साहब का तीसरा आरोप है कि राजशेखर त्रिभुवनपाल को पूर्णतया विस्मृत कर जाता है। किन्तु यदि मूल को पढ़ा जाय तो यह आरोप अनर्गल प्रतीत होगा। पूर्व-उद्धृत मूल पंक्ति में चौलुक्यों में राजशेखर ने केवल त्रिभुवनपाल का नहीं प्रत्युत् बालमूलराज का भी नाम नहीं दिया है। मूलराज द्वितीय ( ११७६-७८ ई०) का भी राजशेखर ने उल्लेख नहीं किया है। राजशेखर उनका नाम गिनाना १. 'दिगन्तावनिमण्डलीकाः""ररक्ष तामक्षतवृत्तमर्णोराजश्चुलुक्यो ध्वलांग___ जन्मा।' वसन्तविलास, सर्ग तृतीय, पद ३७-३८ । २. प्रको, पृ० ४७ । ३. वही, पृ० १०१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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