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ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन ( क्रमशः) [१०३
जहाँतक अर्णोराज का सवाल है राजशेखर ने अपने समूचे ग्रन्थ में उसका केवल एक बार उल्लेख किया है । राजशेखर सही है कि वह अर्णोराज चौलुक्यवंशीय था न कि चाहमानवंशीय । राजशेखर ने अर्णोराज को किसी का उत्तराधिकारी न कहा है और न बनाया है । प्रबन्धकोश में मूल से यह स्पष्ट है - " तदनु मूलराज-चामुण्डराजवल्लभराज-दुर्लभराज भीम - कर्ण-जयसिंहदेव कुमारपाल -अजयपाललघुभीम अर्णोराजः चोलुक्यैः सनाथीकृतः । ""
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' सनाथीकृतः' का तात्पर्य किसी भी सूरत में उत्तराधिकृत नहीं हो सकता है। ' सनाथीकृतः' का अर्थ हुआ कि इन चौलुक्यों ने ( गुर्जरधरा को ) सुरक्षा प्रदान की । अतः राजशेखर की कालक्रमीय सटीकता की प्रशंसा करनी चाहिये । जिस तारतम्य से उसने इन चौलुक्यों का उल्लेख किया है वह कालक्रम की दृष्टि से सही है । मजुमदार ने दूसरी भूल यह की है कि वे अर्णोराज के निधन को भीम (द्वितीय) के शासनारम्भ में रखते हैं । परन्तु प्रबन्धचिन्तामणि के
यहाँ (क्रम का परित्याग करके ) दो ऋतुओं का एक साथ आगमन हुआ है । वीरधवल वीर के बिना लोगों के दोनों नेत्रों में वर्षा और हृदय में ग्रीष्म ऋतु ( विपरीत क्रम से ) आ गयी । इस पद का प्रचिद्वि ( पृ० १२९ पद २३२ ) में हिन्दी अनुवाद हजारी प्रसाद द्विवेदी उतना सुन्दर नहीं कर सके हैं जितना उनके पूर्व टॉनी ने प्रचिटा में किया है । टॉनी ने अंग्रेजी अनुवाद इस प्रकार किया है Other seasons come and go in succession,
But these two seasons have become perpetual.
Now that men are deprived of the hero Viradhavala,
The rainy season in their two eyes, and in
Their heart the hot season of anguish.
किन्तु उक्त अंग्रेजी अनुवाद में भी टॉनी की पकड़ में 'विपरीत क्रम' की बात नहीं आ सकी है, जो प्रबन्धकारों को अभीष्ट थी ।
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१. प्रको, पृ० १०१ ।
२. अभिचि, ९६ टि० ७, पृ० ३६४ दि० ११; सह आप्टे, पृ० ५७० व
पृ० ५८१ ।
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