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१०२ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन दिया गया था, समीचीन नहीं प्रतीत होता है। इस सम्बन्ध में जिनहर्षगणि का मत कि तेजपाल के बाद नागड़ हआ, यह सत्य के अधिक समीप प्रतीत होता है। नागड़ का प्रथम अभिलेखीय उल्लेख एक पाण्डुलिपि की ग्रन्थ-प्रशस्ति ( १२५३ ई० ) में होता है जिसमें उसे महामात्य श्री नागड़ पञ्चकुल कहा गया है। किन्तु दूसरी पाण्डुलिपि ( १२५६ ई० ) में महामात्य नागड़ को प्रभुतासम्पन्न बताया गया है।' इससे स्पष्ट है कि नागड़ ने वस्तुपाल-तेजपाल के दिवंगत होने के उपरान्त शक्ति प्राप्त किया था।
ए० के० मजुमदार ने राजशेखर को निकृष्टतम इतिवृत्तकार कहा है और वस्तुपाल-तेजपाल प्रबन्ध के कई दोष दर्शाये हैं :
(१) राजशेखर को वाघेलों के प्रारम्भिक इतिहास का कम ज्ञान था और वह अर्णोराज को भीमद्वितीय का उत्तराधिकारी बना देता है।
(२) वह सोमेश्वर के विचारों का अनुकरण करता है। (३) वह त्रिभवनपाल को पूर्णतया विस्मृत कर जाता है।
( ४ ) दिल्ली के सुरत्राण मोजदीन की सेना को वस्तुपाल ने जो शिकस्त दी, वह सन्देहास्पद है। राजशेखर वस्तुपाल का यश-वर्णन सत्य को दाँव पर लगा कर करता है। मजुमदार महोदय उदाहरण देते हुए कहते हैं कि मेरुतुङ्ग ने एक श्लोक तेजपाल के मुख से कहलवाया है जिसे राजशेखर उद्धृत करता है और कहता है कि वीरधवल के निधन के उपरान्त वस्तुपाल ने उस श्लोक को पढ़ा।
"आयान्ति यान्ति च परे ऋतवः क्रमेण:'""।" १. पाटन-भण्डार की पाण्डुलिपियों का कैटलॉग, २१८, पृ० ३३, सं० ४० ।
पोरबन्दर अभिलेख ( १२५८ ई० ) तथा कादि दान-पत्र ( १२६० ई०)
में भी नागड़ के उल्लेख हैं । दे० इण्डि० एण्टी०, षष्ठ, २१२ । २. चागु, पृ० १७१-१७२ तथा उसी में पूर्ववणित पृ० १५७-१५८, अपर
वणित, पृ० ४६२ टि० १२० । ३. प्रको (पृ० १२५ पद ३२७ ) में यह पद प्रचि (पृ० १०४ पद २३२)
से उद्धृत किया गया है और जो पुप्रस (पृ० ६६ पद १९८ ) में भी प्राप्त है । ऋतुएँ कम से आती हैं और उसी क्रम से चली जाती हैं किन्तु
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