SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन (क्रमशः) [ १०१ लेख', जयसिंहसूरि कृत वस्तुपाल-तेजपाल प्रशस्ति और अरिसिंह विरचित सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी में भी आबद्ध है। राजशेखर ने ग्रन्थ के परिशिष्ट में लिखा है कि इस समय गुजरात के प्रसिद्ध दानी वस्तुपाल ने वाराणसी में विश्वनाथ-पूजन के निमित्त एक लाख द्रव्य भेजा। वीरम की हत्या के बाद वीसलदेव ने नागड़ को प्रधानमन्त्री बनाकर वस्तुपाल-तेजपाल की लघुश्रीकरण विभाग पर पदावनति कर दी। राजशेखर का यह वर्णन सिद्ध करता है कि वीसलदेव अपने मन्त्रियों के प्रति अकृतज्ञ हो गया था। एक अन्य अवसर पर राणक ने सिंह मामा का पक्ष लिया। सोमेश्वर सचित करता है कि उसने अपने मित्र वस्तुपाल को दो अवसरों पर - धन-अपहरण के समय और सिंह मामा की घटना के समय - बचाया था । परन्तु समकालीन ग्रन्थ वसन्तविलास में इस तरह का कोई वर्णन नहीं है। केवल प्रबन्धकोश में ही यह उल्लेख है कि वीसलदेव ने दोनों भाइयों की मन्त्रित्व-शक्ति को कम किया था। राजशेखर का यह कथन उचित नहीं है, क्योंकि प्रबन्धचिन्तामणि १२३८ ई० में वस्तुपाल द्वारा ही वीसलदेव को राजसिंहासन देने की बात कहती है और पुरातनप्रबन्धसंग्रह तेजपाल को "राजस्थापनाचार्य" घोषित करता है। कम से कम यह तो निश्चित है कि वस्तुपाल के बाद तेजपाल बिना व्यतिक्रम के महामात्य-पद पर १२४६ ई० तक रहा । परन्तु राजशेखर का यह कथन कि वस्तुपाल को नागड़ के पक्ष में निलम्बित ( जिन्हें कालान्तर में पुनः-स्थापित ) कर १. महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ में पृ. ३०३-३३० में प्रकाशित मुनि पुण्यविजय के लेख 'पुण्यश्लोक महामात्य वस्तुपालना अप्रसिद्ध शिलालेख तथा प्रशस्तिलेख' में प्रशस्तिलेखांक सं० २ । जिरको, पृ० ४४३, पृ० ३४५; यह गाओसी सं० १०, बड़ौदा, १९२० में हम्मीरमदमर्दन नाटक के परिशिष्ट में प्रकाशित है। ३. 'वाराणस्यां देवविश्वनाथपूजार्थ प्रहितद्रव्य ल० १।' प्रको, परिशिष्ट १, पृ० १३२। ४. कथवतेः कीतिकौमुदी, बीसवाँ; बॉम्बे गजेटियर, प्रथम, एक; २०२। ५. प्रचि, पृ० १०४; पुप्रस, पृ० ६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy