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________________ ( xll ) स्वाभाविक हैं । इस शास्त्र के स्वरूप में शिथिलता और इसके गौरव में च्युति हुई है । कभी-कभी इतिहास-संरचना के प्रयासों के सर्वेक्षण और समीक्षा को ही इसका आदि और अन्त मान लिया जाता है । इतिहास - रचनाशास्त्र की इतिहास - संरचना के प्राप्य उदाहरणों के प्रति इतनी सतही दृष्टि नहीं है । यह इन प्रयासों का सुनिश्चित उद्देश्य से पैना और गहरा विश्लेषण है जो इनके स्वरूप, उद्देश्य और मूल्यों को उजागर करके उनको एक गुणात्मकता, एक सार्थकता प्रदान करता है । इतिहास - रचनाशास्त्र का यह अध्ययन दो स्तरों पर अपेक्षित हैपहला, आधुनिक काल में संरचना करने वाले इतिहासकार के विषय में और दूसरा, समय की यात्रा में बहुत पहले हुये ऐसे व्यक्तियों के सम्बन्ध में जो इतिहास के तथ्यों की सूचना देने वाले हैं । इतिहासकार और प्रमाण सामग्री के रूप में स्रोतों के जनक दोनों ही स्तरों पर कुछ समान प्रश्न उत्तरित होने और कुछ बिन्दु विवेचित होने हैं । दोनों के ही व्यक्तित्व, परिवेश, दृष्टिकोण और उद्देश्यों की पहचान उनके कृतित्व के सच्चे मूल्यांकन के लिये आवश्यक आधार हैं । इतिहास की संरचना के स्वरूप पर इन दोनों के व्यक्तित्व की छाप होती है । व्यक्तित्व के निर्माण में कई कारकों का योगदान होता है । इनमें प्रमुख हैं- परिवार की परम्परा और शिक्षकों के प्रभाव । देश और काल का परिवेश व्यक्ति के दृष्टिकोण और विवेच्य प्रश्नों के निर्धारण में प्रभावक होता है । तत्कालीन समाज, जिसको सम्बोधित करके इतिहासकार की संरचना करता है, उसके उद्देश्यों, प्रश्नों और उनके उत्तरों को स्वरूप और स्वर देता है । प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के स्रोतों की कई परम्परायें हैं । भारतीय साहित्यिक स्रोतों में वैदिक और ब्राह्मण परम्परायें सुविज्ञात और सुचचित हैं । जैन परम्परा अल्पज्ञात और अत्यल्प प्रयुक्त है । जैन परम्परा की अपनी पहचान और अपनी उपयोगिता है । यह अत्यन्त प्राचीन है । इसकी निरन्तरता शताब्दियों के शिलाखण्डों के बीच से प्रवाहित होती रही है । इसकी अपनी शुद्धता, अपनी गति और अपनी गुणात्मकता है । यह ब्राह्मण और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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