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प्राक्कथन
इतिहास अतीत का अध्ययन है। इतिहासकार अतीत को वर्तमान की समस्याओं के सन्दर्भ में देखता है । इतिहास इतिहासकार की आँखों से देखा हुआ अतीत का सत्य है ।
इतिहास - संरचना की अपनी विधि है । इतिहास एक शास्त्र है जिसे विज्ञान या सामाजिक विज्ञान की संज्ञा और उससे सम्बन्धित गौरव दिया जाता है । इतिहासकार से अपेक्षित है कि वह अपने शास्त्र की विधि और उसके नियमों से परिचित हो और उसका सम्यक् पालन करे । इतिहास के विद्यार्थी को इतिहास का ज्ञान तो दिया जाता है, किन्तु उसे इतिहासशास्त्र की दीक्षा नहीं दी जाती । इतिहासकारों के बीच अपने शास्त्र की विशिष्टता की स्वीकारोक्ति बढ़ रही है। इसी कारण इतिहास - शास्त्र के प्रति जागरुकता उभरी है ।
इतिहास - संरचना के अपने मूल कर्त्तव्य के प्रति समर्पण के साथ ही इतिहासकार ने इस संरचना की प्रक्रिया से सम्बन्धित सैद्धान्तिक विवेचन की ओर भी ध्यान दिया है। ये आनुषंगिक प्रश्न कहीं से भी मूल कार्य के लिये कम महत्त्व के नहीं हैं । ये दो प्रकार के हैं; इन्हें इतिहास - दर्शन और इतिहास - रचनाशास्त्र अभिहित किया जाता है | इतिहास - दर्शन के अन्तर्गत हम इतिहास के तथ्यों और इतिहास रचना की प्रक्रिया दोनों का ही दार्शनिक अनुशीलन करते हैं । इतिहासरचनाशास्त्र के भी दो पृथक् आयाम हैं । एक ओर तो यह इतिहास की संरचना की विधि में प्रशिक्षण को अपना कार्य-क्षेत्र मानता है तो दूसरी ओर यह संरचित इतिहास के स्वरूप को निर्धारित करने वाले प्रेरक और नियामक कारकों का अध्ययन करता है । इस दूसरे रूप में इसे हिस्टोरियोग्राफी की संज्ञा दी जाती है ।
इतिहास - रचनाशास्त्र ( हिस्टोरियोग्राफी) के प्रचलन के साथ ही इसके स्वरूप के विषय में भ्रान्तियों के प्रसार की सम्भावनायें
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