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अब तेजपाल का युद्ध वडूआ वेलाकूल के स्वामी शंख से हुआ । शंख - माहेचक द्वन्द्व-युद्ध में शंख गिरा दिया गया ।
ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन (क्रमशः )
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वर्द्धमानपुर के रत्नश्रावक ने एक दक्षिणावर्त शंख वस्तुपाल को अर्पित किया । वस्तुपाल ने शत्रुञ्जय की यात्रा तथा ऋषभ, विमल और नेमि की वन्दना की । रैवतक पर भी शत्रुञ्जय की भाँति दर्शन किये गये ।
एक बार दिल्ली के मोजदीन की सेना गुजरात में प्रविष्ट हो गई । वस्तुपाल ने मण्डलीक धारावर्ष के पास सेना भेजी और आदेश दिया कि आबू पर्वत के बीच से आती हुई सेना को रोकना मत, अपितु उस घाटी को ही घेर लेना । ऐसा ही हुआ । फलतः यवन लोग मारे गये ।
साधु पूनड़ ने शत्रुञ्जय की यात्रा १२१६ ई० में बम्बेरपुर से तथा १२२९ ई० में नागपुर से आरम्भ की थी । वस्तुपाल और पूनड़ संसंघ शत्रुञ्जय और रैवतक आदि तीर्थं गये ।
एक बार मोजदीन सुल्तान की वृद्धा माता हज यात्रा के लिए उत्सुक स्तम्भपुर आयी । वस्तुपाल ने निजी कोलिकों को भेजकर उसके जलयान में रखी वस्तुओं को लूट लिया । तदनन्तर मन्त्री ने इस दुर्घटना की अनभिज्ञता का स्वांग रचा, वृद्धा को घर ले आये और उसका सत्कार किया । वीरधवल की अनुमति से वस्तुपाल वृद्धा को पहुँचाने दिल्ली - तट तक गये । सुल्तान ने स्वर्ण प्रदान कर मन्त्री का स्वागत किया और मन्त्री ने उसे उपहार दिया। बातचीत के दौरान वस्तुपाल और मोजदीन सुल्तान के बीच आजीवन सन्धि का प्रस्ताव रखा गया था जो दोनों को मान्य हो गया । तत्पश्चात् वस्तुपाल ने लोकहित साधक कार्य किये ।
तेजपाल ने अर्बुद शिखर पर मन्दिर निर्माणका कार्य शुरू किया । ७०० सूत्रधारों का प्रमुख शोभनदेव था और ऊदल को अधीक्षक नियुक्त किया गया । जब शोभनदेव ने निर्माण कार्य में विलम्ब के कारण बतलाये तब अनुपमा देवी ने शीघ्रता के विविध उपायों को सुझाया । वस्तुपाल द्वारा पूछने पर यशोवीर ने चैत्य- वास्तु के गुणदोष बतलाये । वस्तुपाल ने उन सातों वास्तुदोषों में संशोधन करने का निश्चय किया और वह धवलक्क लौट आये ।
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