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________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन (क्रमशः) [ ९५ नृपनांग श्रेष्ठि का पुत्र था और आम्बड़ उदयन मन्त्री का । राजशेखरसूरि के वर्णनों से प्रमाणित होता है कि जैन श्रावक आभड़ ( श्रेष्ठि ) सिद्धराज, कुमारपाल, अजयपाल, अजयपाल के उत्तराधिकारी (बाल मूलराज ) और भीमदेव (द्वितीय ) का समकालीन था। ___ आभड़ श्रेष्ठि के राजनीतिक प्रभाव का परिणाम यह हुआ कि कुमारपाल उससे महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर विचार-विमर्श करता था। प्रबन्धचिन्तामणि और कुमारपाल-चरित में उल्लेख है कि कुमारपाल ने अपने उत्तराधिकार की समस्या पर केवल हेमचन्द्र से परामर्श लिया। कुमारपाल-प्रबन्ध में भी यही इतिवृत्त दुहराये गये हैं।' एक मुस्लिम ग्रन्थ में भी अजयपाल द्वारा विष देने के कुकृत्य का उल्लेख अजयपाल के पश्चात् उसका पुत्र और उत्तराधिकारी (द्वितीय) मूलराज ( ११७६-७८ ई०) चौलुक्य नरेश हुआ जो अल्पवयस्क था और जिसे लोग स्नेह से बाल-मूलराज पुकारते थे। उसकी संरक्षिका माता नाइकि देवी थी। बाल मूलराज ने तुरुष्कों को गाडरारघट्ट के युद्ध में निर्णयात्मक शिकस्त दी थी। राजशेखर इस महत्त्वपूर्ण विजय पर मौन कैसे रह गया, समझ में नहीं आता। ___ इस प्रकार राजशेखरसूरि ने आभड़ प्रबन्ध के माध्यम से एक ओर आर्थिक व्यवस्था पर प्रकाश डाला है तो दूसरी ओर सिद्धराज, कुमारपाल, अजयपाल, अजयपाल के उत्तराधिकारी और भीमदेव (द्वितीय) के राजनीतिक इतिवृत्त प्रदान किये हैं। सिद्धराज और कुमारपाल जैसे प्रतिभाशाली राजाओं के बाद अजयपाल जैसे मूर्ख उत्तराधिकारी होने पर प्रत्यागमन का सिद्धान्त ( Law of Regression ) लागू होता है । सम्भवतः राजशेखर ने इसे सिद्ध कर दिया। २४. श्रीवस्तुपाल प्रबन्ध वस्तुपाल और तेजपाल पत्तन-निवासी और प्राग्वाट्-वंश के १. जिनमण्डनगणिकृत कुमारपाल प्रबन्ध, पृ० ११३ । २. अबुल फज्ल : आइन-ए-अकबरी, द्वितीय, पृ० २६३ । ३. दे० प्रचि०, पृ० ९७; प्रचिद्वि, पृ० ११९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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