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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
हुई । वह तीन प्रकार की बहियाँ रखता था। आभड़ ने कुमारपाल को बतलाया कि राजकोष दो प्रकार के होते हैं-स्थावर और जंगम । जब कुमारपाल और हेमचन्द्र वृद्ध हो गए तब हेमसूरि के गच्छ में दो मत हो गए - (१) रामचन्द्र, गुणचन्द्र आदि समूह (२) बालचन्द्र का समूह । बालचन्द्र के साथ कुमारपाल के भतीजे अजयपाल की मैत्री थी।
उत्तराधिकारी बनाने के लिए कुमारपाल ने हेमचन्द्र और आभड़ से मन्त्रणा की। हेमचन्द्र का विचार था कि नाती प्रतापमल्ल को राजा बनाया जाय, क्योंकि भतीजे अजयपाल को राजपद पर आसीन करने से धर्म का क्षय होगा। आभड़ का मत था कि आत्मीय व्यक्ति ही उपकारी होता है।
मन्त्रणा को बालचन्द्र ने छिपकर सुन लिया। उसने अजयपाल से कह दिया। हेमचन्द्र के स्वर्ग सिधारने के ३२वें दिन अजयपाल ने कुमारपाल को विष देकर मार डाला।
अजयपाल ( ११७३-७६ ई० ) ने राज्य में नृशंसता की । रामचन्द्र आदि को तप्त-लौह-यातना देकर मार डाला। विहार नष्ट किये। जैन साधुओं के सामने मृगया के अभ्यास, चैत्य-परिपाटी के उपहास आदि से अजयपाल ब्राह्मणों के भी चित्त से उतर गया। उसके बाद द्वितीय भीमदेव के शासन ( ११७८-१२४१ ई० ) में आभड़ उसी प्रकार ऋद्धि प्राप्त करता रहा। आभड़ की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उसकी निधियाँ न पा सके और वे चारों पुनः सामान्य वणिक हो गये।
श्रेष्ठी आभड़ का वर्णन प्रबन्धकोश के अलावा प्रबन्धचिन्तामणि, पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह और कुमारपाल-चरित्र संग्रह में भी मिलता है । प्रबन्धकोशागत दो प्रबन्धों हेमसरि प्रबन्ध और आभड़ प्रबन्ध में आभड़ और उससे सम्बन्धित राजाओं के इतिवृत्त प्राप्त होते हैं । श्रेष्ठि आभड़ और आम्बड़ को समकालीन होने के नाते एक ही समझने की भूल की जाती है। ये दोनों भिन्न-भिन्न व्यक्ति थे, एक श्रेष्ठि व सामान्य श्रावक और दूसरा मन्त्री व सेनापति । आभड़ श्रावक १. (१) रोकड़ बही, ( २ ) विलम्ब बही और ( ३ ) परलोक बही।
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