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________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन (क्रमशः) [ ९३ (२) राजशेखर ने वस्तुपाल प्रबन्धान्तर्गत रत्नश्रावक का वर्णन वर्तमान काल के वाक्यों में किया है जिससे यह टपकता है कि रत्नश्रावक मूलरूप से कश्मीर का स्थायी निवासी था किन्तु उस समय वह वर्द्धमानपुर के समीप अस्थायी निवास कर रहा था। (३) जब रत्नश्रावक कश्मीर से गुजरात की ओर तीर्थयात्रा के लिए निकला होगा तब उसकी मुलाकात वर्द्धमानपुर में वस्तुपाल से हुई होगी। ( ४ ) सम्बन्धित १३७ पैरा' की दस पंक्तियों में वस्तुपाल के नाम के साथ 'मन्त्री' शब्द प्रयुक्त नहीं हुआ है, जिससे सिद्ध होता है कि दक्षिणावर्त शङ्ख के आदान-प्रदान के समय वस्तुपाल अल्प वय का रहा होगा और मन्त्री-पद पर भी प्रतिष्ठापित नहीं हुआ होगा। हाँ, रत्नश्रावक अवश्य वृद्ध हो चला होगा क्योंकि सुस्सल के शासनकाल ( १११२-२८ ई० ) में यदि वह जन्मा होगा तो ११९२ ई० तक वह प्रायः ८० वर्ष की वय पूर्ण कर चुका होगा, जिस तिथि को वस्तुपाल भी अपने पिता के साथ तीर्थयात्रा पर निकला था। अतः रत्नश्रावक और वस्तुपाल की भेंट सम्भवतः ११९२ ई० के आसपास हुई होगी जब रत्न वृद्ध और वस्तुपाल युवक रहे होंगे। इस प्रकार राजशेखर के रत्नश्रावक एवं सम्बन्धित प्रबन्ध की ऐतिहासिकता असन्दिग्ध है। २३. आमड़ प्रबन्ध आभड़ अणहिल्लपुर के श्रीमालवंशीय श्रेष्ठि नृपनाग और श्रेष्ठिनी सुन्दरी का पुत्र था। जब आभड़ दस वर्ष का था उसके मातापिता का स्वर्गवास हो गया। फिर भी व्यवसायज्ञ आभड़ उन्नति करता गया। विवाह करने के बाद जीविका के लिए एक मणिकार के यहाँ पाँच लोष्टिक पर प्रतिदिन काम करने लगा। एक बार सिद्धराज ( १०९४-११४२ ई० ) के हाथ एक रत्न बेचकर वह धनवान् व्यवहारी ( व्यापारी ) हो गया। कुमारपाल के समय ( ११४३-७२ ई० ) में उसकी महान् वृद्धि १. प्रको, पृ० ११४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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