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________________ ९२ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन जैन परम्पराओं में पट्टमहादेव न तो कोई सूरि हैं और न जैनाचार्य | इनकी पहचान के लिए गुजरात का इतिहास टटोलना पड़ेगा । सुस्सल ( १११२-२८ ई० ) का समकालीन सिद्धराज ( १०९४-११४४ ई० ) था । उसके समय में सान्तू मन्त्री, मुञ्जाल, प्रधानमन्त्री दाड़क' और उसका पुत्र महादेव अधिक प्रसिद्ध थे । दाड़क के कहने से सिद्धराज ने शत्रुञ्जय की तीर्थयात्रा की थी । दाड़क का पुत्र महादेव सेना का अधिकारी था । ११४७ ई० की एक जैन प्रशस्ति से विदित होता है कि वह कुमारपाल ( ११४४-७४ ई० ) का एक विश्वस्त मन्त्री बन गया, जिसे प्रबन्धकोश में अतिशय ज्ञानी कहा गया है । महादेव को पट्टमहादेव इसीलिए कहा जाता था कि ११४७ ई० के पूर्व वह कुमारपाल की सेना का अधिकारी था । पट्टयाध्यक्ष के अधीन पदिक सेना रहती थी। जिस प्रकार दाड़क ने सिद्धराज को संघ यात्रा के लिए अभिप्रेरित किया, सम्भवतः उसी प्रकार पट्टमहादेव ने नौशहरा के श्रेष्ठि रत्नश्रावक को भी तीर्थयात्रा के लिए उत्साहित किया हो । इस सम्भावना की पुष्टि प्रबन्धकोश के आन्तरिक साक्ष्य से होती है । प्रबन्धकोश में रत्नश्रावक के उल्लेख ग्रन्थारम्भ, 'रत्नश्रावक प्रबन्ध' तथा ग्रन्थ के अन्तिम प्रबन्ध 'वस्तुपाल प्रबन्ध' नामक तीन स्थलों पर मिलते हैं ।" राजशेखर ने लिखा है " तदनन्तर वर्द्धमानपुर के समीप बहुजन मान्य श्रीमान् रत्न नामक श्रावक निवास करते हैं । उनके घर में दक्षिणावर्त शङ्ख की पूजा होती है जिससे उनके पास अपार लक्ष्मी है । कालान्तर में रत्नश्रावक ने वह शङ्ख वस्तुपाल कर-कमलों में अर्पित कर दिया । उसका प्रभाव अनन्त है ।" ३ के — राजशेखर के इस इतिवृत्त से चार बातें स्पष्ट होती हैं ( १ ) रत्नश्रावक न केवल सुस्सल ( १११२-२८ ई० ) का अपितु वस्तुपाल (जन्म १२वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध; निधन : १२३९ ई० ) का भी समकालीन था । १. जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह, पृ० १०१ । २. प्रको, पु० २, पृ० ९३ ९७, पृ० ११४ । ३. वही, पृ० ११४, बढ़वान आधुनिक सुरेन्द्रनगर ( गुजरात ) है, जहां मेरुतुङ्ग ने १३०५ ई० में अपनी प्रचि पूर्ण की थी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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