________________
ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन (क्रमशः) [८९
था। सातवाहन पुलुमावि द्वितीय (८६-११४ ई०) ने दक्षिण में एक नए शहर 'नवनगर' की स्थापना और 'नवनगरस्वामी' की उपाधि धारण की थी। दक्षिण के होयसल नरेश नरसिंह प्रथम ( ११४१-७३ ई० ) के चार मुख्य सेनापतियों में हुल्ल सेनापति जैनधर्म का अनन्य भक्त था। हुल्ल ने श्रवणबेलगोल में चतुर्विशति जिनालय का ( सम्भवतः ११५९ ई० में ) निर्माण तथा तीन जैन केन्द्रों का जीर्णोद्धार कराया था। कदाचित् हुल्ल सेनापति ने उत्तर में भी जिनालयों का निर्माण कराया था और उसी के नाम पर कश्मीर में एक नया नगर 'नवनगर' बसाया होगा जो 'नवहुल्लनगर' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । ___इसी नवीन उत्पल-वंश ( लोहर-वंश ) नवहुल्लनगर ( नौशहरा ) का राजा नवहंस था। प्रबन्धकोश में वणित इस राजा. नवहंस का समीकरण कश्मीर के लोहरवंशीय राजा हर्ष ( १०८९-११०१ ई० ) से किया जाना चाहिये। राजशेखर को सातवीं शताब्दी के पुष्यभूतिवंशीय कन्नौजाधिपति हर्ष ( ६०६-४७ ई० ) के विषय में ज्ञात रहा होगा। अतः कश्मीर के इस नये हर्ष के लिए उसने नवहंस शब्द प्रयुक्त किया। उसके समय में नवहुल्लनगर ( नौशहरा ) का नगरश्रेष्ठी पूर्णचन्द्र था। पूर्णचन्द्र का पुत्र रत्नश्रावक राजा सुस्सल ( १११२२८ ई० ) का समकालीन प्रतीत होता है।
कश्मीर के राजा नवहंस ( हर्ष ) की रानी विजयादेवी की पहचान विचारणीय है। कल्हण ने वर्तुल ( स्थान ) की राजकुमारी बिज्जला का उल्लेख किया है जो हर्ष ( नवहंस ) के उत्तराधिकारी उच्चल ( ११०१-११ ई०) की रानी थी। परन्तु कल्हण चर्चा करता है कि हर्ष के शासनान्त ११०१ ई० में उसके राजमहल में आग लगा दी गयी थी। तब विनाश सन्निकट देखकर पटरानी वसन्तलेखा सहित
१. शास्त्री, कैलाशचन्द्र : दक्षिण भारत में जैनधर्म, वाराणसी, १९६७,
पृ० १०८, पृ० ११९-१२० । २. यह नवहर्ष का अपभ्रंश प्रतीत होता है । नवहर्ष से बिगड़कर नवहस्स
और बाद में नवहस्स से विकृत होकर नवहंस हो सकता है । ३. वर्तुल स्थान का नाम है। भर्तुल के लिए दे० विक्रमाङ्कदेवचरित,
अट्ठहरवा, पद ३८ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org