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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
कोई सम्बन्ध नहीं है। प्रबन्धकोश का नवहुल्लनगर कश्मीर का आधुनिक नौशहरा है जो लगभग ३३° अक्षांश और ७४° देशान्तर पर स्थित है। हल्ल या हल्लक उत्पल (कमल) का पर्यायवाची है जिसका अर्थ हुआ सुर्ख या अधिक लाल ।' कश्मीर के इतिहास में उत्पल-वंश के बाद आने वाले लोहर-वंश को नवीन उत्पल-वंश के नाम से जाना गया। उत्पल और हल्लक पर्यायवाची है। इसलिए नबीन उत्पल-वंश के नगर का आशय नवहल्लक नगर हुआ जो नबहल्लनगर से जाना जाता था। इस नगर का नाम लम्बा-चौड़ा था जो कालान्तर में संक्षिप्त होकर नवनगर या नऊनगर हो गया। नऊनगर का कल्हण ने दो बार उल्लेख किया है। इस नऊनगर या नवनगर का नौशहर या नौशहरा हो जाना उतना ही स्वाभाविक है जितना कि सल्तनत काल में देवगिरि का दौलताबाद हो जाना।
अब प्रश्न उठता है कि इस नवहुल्लनगर को किसने बसाया ? कल्हण ने राजतरंगिणी के प्रथम से तृतीय तरङ्ग तक प्रायः १७ नगरों के निर्माण का वर्णन किया है। नगरों के लिए पुर तथा पत्तन समानार्थक शब्द हैं। परम्परा हिरण्याक्ष को हिरण्यपुर बसाने का श्रेय प्रदान करती है, जो आज सिंघघाटी रण्यिल में छोटा-सा स्थान श्रीनगर को जाने वाली सड़क के समीप है। कश्मीर में नगरों को बसाये जाने की परम्परा कुषाणकाल में स्पष्ट दीख पड़ती है। हुष्कपुर ( बार्मूला से २ मील = प्रायः ३.५ कि० मी० दूर आधुनिक उष्कर गाँव ) जुष्कपुर और कनिष्कंपुर नामक तीनों नगरों को क्रमशः कुषाण सम्राट् हुविष्क, जुष्क ( वशिष्क ) तथा कनिष्क (७८ ई० ) ने बसाया १. वही, भाग १, पृ०६९७ टि० । स्टाइन कहता है कि नऊनगर वितस्ता
के बाएँ तट पर ३३° अक्षांश और ७५° देशान्तर पर स्थित है जो
विजयेश्वर और श्रीनगर के मार्ग में पड़ता है । २. "सुर्ख (अधिक लाल ) उत्पल के दो नाम हैं - हल्लकम्, रक्तसन्ध्यकम्
( + रक्तोत्पलम् ) ११ अभिचि, अ० ४, श्लोक २३०, पृ० २८३ । ३. सातवीं तरङ्ग, श्लो० ३५८, पृ २९७; आठवीं तरङ्ग, श्लोक ९९५;
पृ० ७८, स्टाइन ( भाग १, भूमिका, पृ० ३५) लिखता है कि कल्हण के भौगोलिक वर्णनों में सटीकता है।
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