________________
ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन (क्रमशः) [८७ वह संघ यात्रा के निमित्त चला। मार्ग में कालमूर्ति के प्रकट होने से संघ भयातुर हो गया। राजपुत्रों, संघ-प्रधान, भाइयों एवं पत्नी सभी की युक्तियों का निषेध कर, रत्नश्रावक ने स्वयं अपने को कालमूर्ति के लिए उत्सर्ग करने का निश्चय किया। कालपुरुष ने रत्न को जिस गुफा में फेंक दिया था उसमें कूष्माण्डी देवी के साथ सात क्षेत्रपति' गये। कालपुरुष को दण्डित करने के लिए ज्यों ही गुफाद्वार का पत्थर हटाया गया, त्यों ही वहाँ शंकर की एक दिव्य-मूर्ति प्रत्यक्ष हुई, जो रत्नश्रावक की नेमि-वन्दना वाली प्रतिज्ञा की परीक्षा ले रही थी।
तदनन्तर रत्नश्रावक संघ के साथ रैवतक पर्वत पर चढ़ा । नेमिनमन के बाद जब रत्न ने बिम्ब को स्नान कराया तब बिम्ब गल गया । रत्न ने उपवास और तपस्या की जिससे उसे एक प्रस्तर-बिम्ब प्राप्त हुआ जिसे रत्न ने प्रतिष्ठापित कर दिया।
इसके उपरान्त रत्न अन्यान्य तीर्थों की वन्दना करके नवहुल्लपत्तन लौटा । रत्न द्वारा स्थापित नेमि-बिम्ब आज भी वन्दनीय है। ___ बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में कश्मीर प्रदेश में वंशानुगत संघर्ष, विद्रोह, षड्यन्त्र और रक्तपात हो रहे थे। उच्चल तथा सुस्सल के नेतृत्व में डामरों ने हर्ष को त्रस्त करना शुरू कर दिया था। सुस्सल का भिक्षाचर आदि के साथ गृह-युद्ध ( १११२-२८ ई० ) चलता रहा। भिक्षाचर ने पृथ्वीहर के साथ कश्मीर छोड़ दिया और पुष्याणनाड ग्राम ( वर्तमान पुषिआण, राजौरी) की ओर बढ़ा । 'नाड' शब्द का संस्कृत में रूप 'नाल' होगा जो कालान्तर में 'नल्लह' ( अर्थात् तलहटी ) हो गया होगा। परन्तु इस 'नल्लह' का नवहुल्लनगर से १. राजशेखर ने प्रको, पृ० ९६ में इनके नाम गिनाये हैं - (१) कालमेघ
(दे० प्रचि, पृ० १२३ व वितीक (कालमेह ) पृ० ६, पृ० १०), (२) मेघनाद, ( ३ ) गिरिविदारण, (४) कपाट, (५) सिंहनाद,
(६) खोटिक एवं (७) रेवत । २. राजतरंगिणी, ८. ९५९, पृ० ७५ । ३. स्टाइन : कल्हण्स राज०, भाग १, पृ० ७५ तथा भाग २, पृ० ७५.
७६ टि।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org