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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
प्रकार के वाद्य यन्त्रों, पक्षियों, उद्यान की रमणीयता और आनन्दो - त्सवों का वर्णन करते हुए उसने दो मुख्य घटनाओं के अतिरिक्त दो विरोधी व्यक्तित्वों - मदनवर्म और सिद्धराज - के विषम चरित्रों को भी उजागर किया है। एक कामिनी प्रेमी है और दूसरा काञ्चन प्रेमी । एक अन्तरंग रास रसिक है तो दूसरा बहि-भ्रमण करने वाला शूरवीर ।
२२. रत्नभावक प्रबन्ध
जैसा कि पहले लिखा जा चुका है १९३५ ई० में जिनविजय ने कश्मीर निवासी संघपति रत्नश्रावक की कथा को इतिहास के विचार से अज्ञात कहा था । रत्नश्रावक प्रबन्ध इस तथ्य का साक्षी है कि राजशेखरसूरि ने अपनी लेखनी उस प्रदेश के लिए भी उठायी जिसमें शैव मत का प्रबल प्रचार था । वङ्कचूल की भाँति रत्नश्रावक का भी कल तक समीकरण नहीं किया जा सका था । प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में सर्वप्रथम रत्नश्रावक से सम्बन्धित ऐतिहासिक तथ्य प्रदान करने के बाद नबहुलनगर, राजा नवहंस, रानी विजयादेवी की पहचान और नवहंस के कालक्रम, रत्नश्रावक व पट्टमहादेव की पहचान से सम्बन्धित बिन्दुओं को उठाया जायगा ।
कश्मीर में नवहुलनगर का राजा नवहंस था और उसकी रानी विजयादेवी थी । उसी नगर में नगर श्रेष्ठी पूर्णचन्द्र के तीन पुत्र थे -- रत्न, मदन और पूर्णसिंह । रत्न की पत्नी पउमिणि थी और पुत्र कोमल था । ये सब जैन थे ।
नेमिनाथ-निर्वाण से आठ हजार वर्ष बीत चुके थे । उसी नवहुल्लपत्तन में पट्टमहादेव नामक अतिशय ज्ञानी रहते थे । उनके पास राजा, अन्तःपुरवासी और रत्न, मदन, पूर्णसिंह, श्रेष्ठिनी पउमिणि और पुत्र कोमल गये । गुरु ने उपदेश दिया और जिनालय - दर्शन व जिन सेवा के सामान्य फल बतलाये । शत्रुञ्जय सेवा, रैवतगिरि सेवा और नेमि के दर्शन, स्पर्श और वन्दना से परम पद की प्राप्ति होती है । फलतः रत्नश्रावक ने नेमियात्रा की प्रतिज्ञा की और पत्नी के साथ संघ में जा मिला ।
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