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________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन ( क्रमशः ) [ ८५ होता है | अतः जयसिंह ने नरवर्मा का वध नहीं किया। तीसरे, युद्ध के १२ वर्षों तक चलते रहने से राजशेखर का आशय यह था कि संघर्ष लम्बा था | अन्तिम तथ्य यह है कि सिद्धराज की विजय ( ११३६-३७ ई० के आसपास ) निश्चयात्मक रूप से हुई थी क्योंकि सिद्धराज सम्भवतः मालवा के सामरिक और आर्थिक महत्व को भलीभाँति समझ रहा होगा । दूसरी घटना पहली की परिणति है । चौलुक्य राज्य में मालवा के सम्मिलित किये जाने के बाद चन्देल राज्य से संघर्ष होना अनिवार्य था, क्योंकि दोनों की सीमाएँ एक दूसरे से मिलती थीं। चौलुक्यचन्देल संघर्ष में कम से कम ३४ वर्षों तक शासन करने वाले सिद्धराज और वर्षों तक सत्तारूढ़ मदनवर्म का आमना-सामना होता है । राजशेखर के वर्णन से यह निश्चित है कि यह चौलुक्य-चन्देल संघर्ष अनिर्णायक रहा परन्तु यह भी ध्वनित होता है कि इन दोनों राजवंशों में सन्धि हो गयी । एक जैन ग्रन्थ में इंगित है कि उस चौलुक्यराज को वहाँ से बिना किसी उपलब्धि के मदनवर्म से सन्धि कर लौट आना पड़ा ।' लेकिन अभिलेखों में गूंजता है कि "क्षणमात्र में मदनवर्म ने वैसे ही गुर्जरनरेश को परास्त कर किया जैसे कृष्ण ने कंस को । इन विरोधी विवरणों में तालमेल नहीं है क्योंकि राजशेखर द्वारा प्रस्तुत मदनवर्म - सिद्धराज वार्तालाप से युद्ध की ध्वनि नहीं निकलती । यदि सिद्धराज ने चन्देल नरेश पर चढ़ाई की भी तो ९६ करोड़ स्वर्ण मुद्राओं के अलावा न तो विजय उसके हाथ लगी और न कोई निर्णय । अतः राजशेखर का यह संकेत कि अन्ततः दोनों में सन्धि हो गयी, यथार्थ के अधिक निकट प्रतीत होता है । ܐ ܙ ܙ अन्त में दो विरोधी चरित्रों का मूल्यांकन शेष रह जाता है । यद्यपि राजशेखर ने तीन समकालिकों सिद्धराज, नरवर्मा और मदनवर्म का इतिवृत्त एक साथ एक ही प्रबन्ध में प्रदान किया है तथापि विविध १. कुमारपाल भूपालचरित, १.४२ । २. कालिंजर अभिलेख, ज० ए० सो० बंगाल, जि० १७, पृ० ३१८; चन्दबरदायी ( इण्डि० एण्टि०, जिल्द ३७, पृ० १४४ ) तो यह उल्लेख करता है कि मदनवर्म ने सिद्धराज को हराया; पाहिनाइ, पृ० ६७ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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