________________
८२]
प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
२०. लक्ष्मणसेन और मन्त्री कुमारदेव का प्रबन्ध
लक्ष्मणसेन, लक्षणावती का राजा था। उसके समान बुद्धिमान और पराक्रमी उसका मन्त्री कुमारदेव था । लक्ष्मणसेन का समकालीन राजा वाराणसी में जयन्तचन्द्र तथा उसका मन्त्री विद्याधर था ।
लक्षणावती के दुर्भेद्य दुर्ग और विशाल सेना -समूह की चर्चा सुनकर जयन्तचन्द्र ने दुर्ग-विजय की प्रतिज्ञा की और लक्षणावती पर आक्रमण कर दिया । उसने दुर्ग के समीप शिविर लगा दिया। खाद्यान्न आदि वस्तुओं के अभाव से संकट उत्पन्न हो गया । अट्ठारह दिन बीत गये । लक्ष्मणसेन ने अपने मन्त्री कुमारदेव से कहा कि हम काशीपति को कर नहीं देंगे - युद्ध करेंगे। फलतः सभी सामन्तों और अमात्यों को सूचना दी गयी । पर कुमारदेव शत्रु जयन्तचन्द्र के बल को भाँप कर संशय में पड़ गया । वह शत्रु-शिविर में मन्त्री विद्याधर के पास पहुँचा । गुप्त मन्त्रणा हुई जिससे लक्ष्मणसेन को कर ( अर्थदण्ड ) न देना पड़े । उल्टे मन्त्री कुमारदेव की नीति के फलस्वरूप २६ लाख स्वर्ण मुद्राएँ लक्ष्मणसेन के राजकोष में आ गयीं ।
लक्ष्मणसेन और मन्त्री कुमारदेव का प्रबन्ध राजशेखर के इतिहासलेखन में एक नया मोड़ है । इस प्रबन्ध में वर्णित एक भी व्यक्ति जैन नहीं है । इस प्रकार साम्प्रदायिकता के संक्रामक रोग से प्रबन्धकार मुक्त हो जाता है । यों तो राजशेखर ने अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों पर वत्सराज उदयन प्रबन्ध में संकेत दे दिया था, परन्तु इस प्रबन्ध में पहली बार अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों का विवरण देते हुए राजशेखर ने राजवंशीय इतिवृत्त प्रस्तुति का भी द्वार खोला । गहड़वाल राजवंश और सेन वंश में अनिर्णयात्मक युद्ध के बादल अट्ठारह दिनों तक मडराते रहे ।
राजशेखर लक्ष्मणसेन की प्रशंसा करते हुए कहता है कि वह बड़ा प्रतापी और न्यायी राजा था जिसके पास विपुल राज्य और अपार सेना थी, पर उसकी साहित्यिक उपलब्धियों के विषय में प्रबन्धकार
१. लक्षणावती के दुर्भेद्य दुर्ग-विजय का जयन्तचन्द्र द्वारा संकल्प, राज्यारोहण के अवसर पर की गई हर्ष ( ६०६ ई० ) के संकल्प का और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org