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ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन (क्रमशः) [८१
वत्सराज उदयन का वर्णन जैन, बौद्ध और संस्कृत तीनों साहित्यों में आता है। जैन-ग्रन्थों में प्रबन्धकोश के अलावा विविधतीर्थकल्प जैनसूत्रों और करिकण्डुचरिउ में वत्सराज का वर्णन है । _छठी शताब्दी ई० पू० के उत्तरार्द्ध में वत्सराज उदयन का लगभग ६२ वर्षों का दीर्घकालिक शासन-काल ( ५४४ ई० पू०-४८२ ई० पू०)
रहा।
वत्सराज उदयन के पिता शतानीक ( द्वितीय ) कौशाम्बी के प्रसिद्ध चन्द्रवंशी राजा थे। प्रबन्धकोश में उदयन को ऋषभवंशीय कहा गया है। ऋषभदेव स्वयं चन्द्रवंश में ही उत्पन्न हए थे। इसलिए उदयन का चन्द्रवंशीय होना स्वाभाविक है। पुराण और जैन-ग्रन्थ भी उदयन को शतानीक का पुत्र बतलाते हैं । राजा शतानीक परन्तप के बाद उसका पुत्र उदयन गद्दी पर बैठा। चूंकि भास के नाटकों में उदयन को वैदेहीपुत्र कहा गया है, इसलिए उदयन की माता विदेह राजकुमारी थी जिसका नाम अज्ञात है। किन्तु कथासरित्सागर और जैन-प्रबन्धों के अनुसार उसकी माता का नाम मृगावती था।
अध्ययन काल में उदयन ने गज-वशीकरण विद्या, गान-विद्या, सर्प-विष-हरण विद्या और युद्ध-कला सीखी थी। गान-विद्या में निपुणता के कारण वह 'नाद-समुद्र' पदवी से विभूषित कलासक्त, धीर और ललित नायक कहा गया है। किन्तु बुद्ध की कौशाम्बी यात्रा के पश्चात् उसी पिण्डोल भारद्वाज ने उदयन को बौद्धधर्म में दीक्षित किया था। उदयन के धर्म-परिवर्तन के पश्चात् कौशाम्बी बुद्ध और उनके अनुयायियों का महत्वपूर्ण कार्य क्षेत्र बन गया। १. घोष : अर्ली हिस्टरी ऑफ कौशाम्बी, प० ३३-३४।। २. रायचौधरी, हेमचन्द्र : प्रा० भा. रा० इ०, पृ० १५१; केवल कथा
सरित्सागर और बृहत्कथा-मञ्जरी उदयन को शतानीक का पौत्र बतलाते हैं। दे. जोशी, नीलकण्ठ : ना० प्र० पत्रिका, पूर्वनिर्दिष्ट,
पृ० २८ ३. भण्डारकर : कारमाइकेल लेक्चर्स, १९१८, पृ० ५८-५९; प्रको, पृ.
८६; वितीक, पृ० २३ ।
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