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प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन
आदि विक्रमादित्य मालवों का प्रतिनिधि सामरिक प्रमाणित होता है जिसने शकों को हराकर देश से बाहर निकाल दिया। भारत से उनकी शक्ति मिटाकर एक परम्परा की नींव डाली जिसे आगे आने वाले विक्रमादित्यों ने पाला और निबाहा ।
विक्रमादित्य अवन्तिपति, शकविजेता और संवत्सर प्रवर्तक के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे सिद्धसेन दिवाकर के उपदेश से जैन बने । उन्होंने जिनालय बनवाये, जिन-बिम्बों की स्थापना करायी, शत्रुञ्जय तीर्थ का उद्धार कराया और पृथ्वी को ऋण मुक्त कर शकों को हराकर संवत् प्रवर्तन किया। भले ही वह जैन-धर्म के प्रभाव में रहा हो और उसे संरक्षण प्रदान करता हो, विक्रमादित्य का वंशानुगत और व्यक्तिगत धर्म शैव धर्म था। १८. नागार्जुन प्रबन्ध ___नागार्जुन राजपुत्र क्षत्रिय थे। उनका जन्म-स्थान ढंक नगर था। उनके पिता वासुकि नाग और माता राजपुत्री भोपल देवी थी। फलतः नाग से उत्पन्न पुत्र का नाम नागार्जुन हुआ। उसे अनेक औषधियों .. का सेवन कराया गया जिससे नागार्जुन को सिद्धियाँ प्राप्त हुई। कालान्तर में वह सातवाहन राजा का कला-गुरु और पादलिप्ताचार्य का शिष्य हो गया। उसके कौशल से चमत्कृत हो आचार्य ने उसे पादलिप्तपुर में गगन-गामिनी विद्या सिखला दी।
राजपुत्र नागार्जुन ने रस-सिद्धि के निमित्त द्वारवती की पार्श्व
१. तुलनीय प्रभाच, पृ० ३६, जहाँ पिता का नाम संग्राम और माता का
नाम सुव्रता बताया गया है। इनके गर्भ में आते ही माता ने स्वप्न में सहस्र फणों वाला नाग देखा था। इसीलिए इनका नाम नागार्जुन रक्खा
गया। जैपइ, पृ० २४०। २. सौराष्ट्र में पालिताणा नामक नगर। नागार्जुन ने सूरिजी की स्मृति में
सिद्धगिरि की तलहटी में पादलिप्तपुर नामक नगर बसाया था। जैपइ, पृ० २४१ । पालिताणा का प्राचीन नाम तिलतिलपट्टण था । दे० जैपइ, प० ३३५ ।
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