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योग की अवधारणा : जैन एवं बौद्ध
१९. नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गो त्ति पनत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं।।
नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा।
एयं मग्गमणुप्पत्ता जीवा गच्छन्ति सोग्गइ।। उत्तराध्ययनसूत्र, २८/२-३ २०. दर्शनपाहुड, ३२ २१. जीव, अजीव, आसव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्षा २२. जैन धर्म के प्राण, पृ०-२४ २३. उत्तराध्ययनसूत्र- २८/३० २४. सूत्रकृतांगसूत्र- १/८/२२-२३
देखें- जैन, बौद्ध और गीता का साधना-मार्ग, डॉ० सागरमल जैन, पृ०५२ विशेषावश्यकभाष्य-२६७५। उद्धृत- जैन, बौद्ध ओर गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-२, पृ०- ५५ स्थानांगसूत्र-२/१/७०
प्रवचनसारोद्धार (टीका)- १४९/९४२ २८. योगशास्त्र (हेमचन्द्र)-२/१५ २९. उत्तराध्ययनसूत्र, २९/१ ३०. जैन, बौद्ध और गीता का साधना-मार्ग, पृ०-५८ ३१. वही, पृ०- ५९ ३२. गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गाथा २९ ३३. उत्तराध्ययनसूत्र- २८/१६ ३४. जैन, बौद्ध और गीता का साधना-मार्ग-डॉ० सागरमल जैन, भाग-२, पृ०५४-५५ ३५. आचारांगसूत्र- १/५/५/१६८ ३६. पुरुषार्थसिद्धियुपाय-२३ ३७. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, १२ । ३८. वही, २३। ३९. वही, २२ ४०. पुरुषार्थसिद्धियुपाय, २७
४१. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, १७ ४२. पुरुषार्थसिद्धियुपाय, ३० ४३. आत्मा छे, ते नित्य छे, छे कर्ता निजकर्म।
छे भोक्ता वणी मोक्ष छे, मोक्ष उपाय सुध।। आत्मसिद्धिशास्त्र, ४३
पढ़मं नाणं तओ दया एवं चिट्ठई सत्वसंजए- दशवैकालिक-४/१० ४५. तत्त्वार्थसूत्र -(पं० सुखलाल संघवी) पृ०-१० ४६. द्रव्य-संग्रह,४२। ४७. ज्ञानसागर,५/२ ४८. दशवैकालिक,४/१४-२७ ४९. नाणस्स सव्वस्स पगासणाए, अन्नाण-मोहस्स विवज्जणाए।
रागस्स दोहस्स य संखएणं, एगन्तसोक्खं समुवेइ मोक्खं।।, उत्तराध्ययनसूत्र, ३२/२ दर्शनपाहुड, ३१
अभिधानराजेन्द्र कोश, पृ०-५१५ ५२. वही, पृ०-५१४ ५३. मतिश्रुताऽवधिमनःपर्यायकेवलानि ज्ञानम् । तत्त्वार्थसूत्र, १/९ ५४. योगदृष्टिसमुच्चय, ११९ ५५. पाश्चात्य दर्शन के प्रमुख सिद्धान्त-डॉ. विजय कुमार, पृ०-११४
समयसार, १४४ ५७. समयसार (टीका), ९३ ५८. आचारांगसूत्र, १/३/४
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५१.
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समयसार,
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