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________________ ७८ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन महत्त्व दिया गया है, जबकि जैन परम्परा में तप साधना को योग-साधना से अलग रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। इस प्रकार हमारे समक्ष जैन एवं बौद्ध परम्पराओं की योग सम्बन्धी अवधारणा का एक तुलनात्मक रूप उपस्थित हो जाता है जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि दोनों ही परम्पराओं में कुछ एक भिन्नताओं को छोड़कर दोनो एक-दूसरे के निकटवर्ती हैं। सन्दर्भ १. पाणिनीय धातुपाठ, ४/६८, हेमचन्द्र धातुमाला, गण - ४, २. पाणिनीय धातुपाठ, ४/६८, ३. हेमचन्द्र धातुमाला, गण - ४ ४. हिस्ट्री ऑफ इण्डियन फिलोसॉफी, एस० एन० दास गुप्ता, भाग-१, पृ०- २२६-२२७ उत्तराध्ययनसूत्र, २९/८,तत्त्वार्थभाष्य, ६/१ युज्यते वाऽनेन केवलज्ञानादिना आत्मेति योगः । उद्धृत-जैन योग सिद्धान्त और साधना, उपोद्धात, पृ०-२५ ७. अंगुत्तरनिकाय (हिन्दी अनुवाद), भाग-२, पृ०-१२,अभिधर्मकोशभाष्य, ५/४० योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः। पातञ्जल योगदर्शन, १/२ हिन्दी विश्वकोश, भाग-९, पृ०-४९६ निरूद्धासवे (संवरो), उत्तराध्ययनसूत्र , २९/११, आस्रवनिरोध: संवरः। तत्वार्थसूत्र, ९/१ पंच आसवदारा पण्णत्ता, तं जहा-मिच्छतं, अविरई, पमाया, कसाया, जोगा। समवायांगसूत्र ५/४ तिविहे जोए पण्णत्ते, तं जहा–मणजोए, वइ जोए, कायजोए। स्थानांगसूत्र, ३/१/१२४, तत्त्वार्थसूत्र, ६/१ विवरीयाभिणिवेसं परिचत्ता जोण्हकहियतच्चेसु। जो जुंजदि अप्पाणं णियभावो हो हवे जोगो। नियमसार , १३९ १४. एवं त्यक्त्वा बहिर्वाचं त्यजेदन्तरशेषतः। एष योग: समासेन प्रदीप: परमात्मनः।। यन्मया दृश्यते रूपं तन्न जानाति सर्वथा। जानन दृश्यते रूपं तत: केन ब्रवीम्यहम्।। समाधितंत्र, १७-१८ मोक्खेण जोयणाओ जोगो। योगविंशिका- १, १६. योगबिन्दु, ३१ १७. चतुवर्गेऽग्रणी मोक्षो योगस्तस्य च कारणम्। ज्ञान-श्रद्धान -चारित्ररूपं रत्नत्रयं च सः।। योगशास्त्र, १/१५ १८. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। तत्त्वार्थसूत्र, १/१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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