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________________ योग की अवधारणा : जैन एवं बौद्ध (१) रागचरित- राग चर्यावाला व्यक्ति स्वाभाविक रूप से गमन करता है। (२) द्वेषचरित - इस प्रकृति का व्यक्ति चलते समय जमीन को खोदते हुए चलता है। (३) मोहचरित - इस प्रकृति के व्यक्ति की गति व्याकुल होती है। वह डरपोक व्यक्ति की भाँति पैर उठाता और रखता है। ७३ (४) श्रद्धाचरित - श्रद्धाचरित की चाल ढाल रागचरित की भाँति ही होती है। (५) बुद्धिचरित - इस प्रकृति के व्यक्ति की चाल-ढाल द्वेषचरित की तरह होती है। (६) वितर्कचरित - इस प्रकृति के व्यक्ति की चाल-ढाल मोहचरित की भाँति होती है। इनके अतिरिक्त कुछ विद्वान् तृष्णा, मान और दृष्टि को भी चर्या के रूप में स्वीकार करते हैं । उपर्युक्त छः प्रकार की चर्याओं में मुख्यतः तीन ही हैं— राग, द्वेष और मोह | क्योंकि राग के समान श्रद्धाचरित है, द्वेष के समान बुद्धिचरित है तथा मोह के समान वितर्कचरित है। इनमें से राग, द्वेष, मोह और वितर्क ये चार चरित अकुशल चरित हैं इनका प्रहाण करने के लिए इनके विपरीत कर्मस्थानों की भावना करनी चाहिए। शेष दो अर्थात् श्रद्धा और बुद्धि कुशल चरित हैं। अतः इन चरितों के लिए वे कर्मस्थान अनुकूल होते हैं जो श्रद्धा और बुद्धि में अभिवृद्धि करें। इन सब चर्याओं के द्वारा आचार्य दूसरे के चित्त को जानने का प्रयत्न करते हैं। जो इनमें कुशल नहीं होते उनसे वे विभिन्न प्रश्न पूछकर उनके चाल-ढाल को जानने का प्रयत्न करते हैं। फिर उनकी चर्या के अनुरूप उनको कर्मस्थान का उपदेश देते हैं। विपश्यना - भावना निर्वाण की प्राप्ति हेतु शमथ की भावना के पश्चात् विपश्यना की भावना आवश्यक है। विपश्यना के बिना योगी न तो अर्हत् पद को प्राप्त कर सकता है और न ही संसार के बंधन से मुक्ति पा सकता है । परन्तु यहाँ यह स्पष्ट कर देना उचित जान पड़ता है कि पालि-त्रिपिटक में कहीं-कहीं शमथ भावना एवं विपश्यना भावना का एक साथ होने का उल्लेख मिलता है, तो कुछ स्थानों पर विपश्यना का शमथपूर्वक और कहीं-कहीं विपश्यनापूर्वक शमथ होने का उल्लेख मिलता है । २१७ इससे यह स्पष्ट होता है कि शमथ और विपश्यना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, अर्थात् जहाँ शमथ भावना है वहाँ विपश्यना भावना और जहाँ विपश्यना भावना है वहाँ शमथ भावना है। शमथ और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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