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________________ ७० जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन मुदित होना मुदिता है। उपेक्षा—किसी आलम्बन के प्रति न राग और न द्वेष हो, मात्र उपेक्षा करनेवाले धर्म को उपेक्षा कहते हैं। इन चार ब्रह्मविचारों की भावना से चित्त के राग-द्वेष, ईर्ष्या आदि मलों का नाश होता है तथा प्रमाण रहित (असंख्य) जीवों के प्रति प्रेम की भावना उत्पन्न होती है । अन्य कर्मस्थान आत्महित के साधन हैं जबकि ये चार ब्रह्मविचार पर-हित के भी साधन हैं। किन्तु ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ये ब्रह्म विहार परहित के ही साधन हैं, क्योंकि इसमें परहित के साथ-साथ आत्महित भी निहित है। चार आरूप्य जब साधक चार रूप ध्यान के पश्चात् चार अरूप ध्यान की ओर अग्रसर होता है तो वह चार आरूप्य कर्मस्थानों को अपनी साधना का आलम्बन बनाता है। चार आरूप्य निम्नलिखित हैं-२०७ (१) आकाशानन्त्यायतन- जब योगी विश्वाकार रूपाकृति को दूर कर उसके स्थान पर विश्व में केवल एक आकाश है, आकाश अनन्त है- इस प्रकार के अरूप आलम्बन को ग्रहण करके आकाश की अनन्तता के विषय में ध्यान करता है, तो उसका वह ध्यान आकाशानन्त्यायतन कहलाता है। चतुर्थ ध्यान तक रूप आलम्बन रहता है तथा पाँचवें ध्यान से अरूप आलम्बन का विषय बनता है। (२) विज्ञानानन्त्यायतन- आकाश की जगह पर जब योगी विज्ञान की अनन्तता का ध्यान करता है, तो उसका यह आलम्बन विज्ञानानन्त्यायतन कहलाता है। (३) आकिञ्चन्यायतन- विज्ञान की अनन्तता से हटकर अभाव की अनन्तता पर ध्यान करता है तो उसे यह ज्ञात होता है कि संसार में कुछ भी नहीं है, सब कुछ शान्त है । इस प्रकार के ध्यान का आलम्बन करना आकिश्चन्यायतन कहलाता है। (४) नवसंज्ञानासंज्ञायतन- अभाव की संज्ञा का त्याग करने की स्थिति नैवसंज्ञानासंज्ञायतन कहलाता है। इस आयतन में संज्ञा का अतिसूक्ष्म अंश विद्यमान रहता है किन्तु संज्ञा का कार्य हो इतना स्थूल भी वह नहीं रहता, इसलिए इस आयतन को नैवसंज्ञानासंज्ञायतन कहा जाता है। आहार में प्रतिकूल संज्ञा आहार में जुगुप्साबुद्धि के उत्पाद के लिए भावना करना आहार में प्रतिकूल संज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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