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________________ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन उपशमानुस्मृति - निर्वाण के शान्त-सुख-स्वभाव का बार-बार स्मरण करने को उपशमानुस्मृति कहते हैं। ६८ मरणानुस्मृति - मरण एवं जीवितेन्द्रिय के विनाश की वास्तविकता को बार-बार स्मरण कर दृढ़ करना मरणानुस्मृति है । २०४ कायगतानुस्मृति - चार महाभूतों से बने इस अशुद्ध शरीर के विषय में बार-बार विचार करते हुए विरक्ति के भाव का अनुस्मरण कायगतानुस्मृति है। आनापानस्मृति- आश्वास एवं प्रश्वास में आलम्बनवश प्रवृत्त स्मृति आनापानस्मृति कहलाती है। आन का अर्थ होता है 'साँस लेना' और 'अपान' का अर्थ होता है 'साँस छोड़ना ' । अतः स्मृतिपूर्वक आश्वास-प्रश्वास की क्रिया आनापानस्मृति कहलाती है। इस प्रक्रिया को ही अन्य परम्पराओं में प्राणायाम के नाम से जाना जाता है । बौद्ध परम्परा में १६ (सोलह) प्रकार से इस आश्वास-प्रश्वास की क्रिया को करने का विधान है, २०५ जो आचार्य नरेन्द्रदेव के शब्दों में निम्नरूपेण है १. साधक यदि दीर्घ श्वास छोड़ता है तो वह जानता है कि मैं दीर्घ श्वास छोड़ रहा हूँ, यदि वह दीर्घ श्वास लेता है तो वह जानता है कि मैं दीर्घ श्वास ले रहा हूँ । २. यदि साधक ह्रस्व श्वास छोड़ता है या ह्रस्व श्वास लेता है तो उसे यह मालूम होता है कि मैं ह्रस्व श्वास छोड़ या ह्रस्व श्वास ले रहा हूँ। ३. इस प्रक्रिया में साधक आश्वास-काय के आदि, मध्य और अवसान इन सब भागों का अवरोध कर श्वास परित्याग करने का अभ्यास करता है। ४. इसमें साधक स्थूल-काय - संस्कार का उपशमन करते हुए श्वास छोड़ने और श्वास ग्रहण करने का अभ्यास करता है। ५. इसमें साधक प्रीति का अनुभव करते हुए श्वास का परित्याग और ग्रहण करना सीखता है। ६. इस प्रक्रिया में साधक सुख का अनुभव करते हुए श्वास छोड़ना और श्वास लेना सीखता है। ७. इसमें साधक चारों ध्यान द्वारा चित्त-संस्कार का अनुभव करते हुए श्वास छोड़ता और श्वास ग्रहण करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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