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________________ योग की अवधारणा : जैन एवं बौद्ध ६७ ४. विच्छिद्रक- कटने से दो भागों में विभक्त शव। ५. विखादिक- कुत्ते, शृगाल आदि द्वारा खाया गया मृत शरीर। ६. विक्षिप्तक- इधर-उधर फेंके गये विभिन्न आकारवाले मृत शरीर। ७. हतविक्षिप्तक- अंग-प्रत्यंगों को शस्त्र आदि से काटकर फेंका गया शरीर। ८. लोहितक- बहते हुए रक्त से सना हुआ मृत शरीर। ९. पुलुवक- कृमियों से परिपूर्ण मृत शरीर। १०. अस्थिक- अस्थिमात्र में अवशिष्ट शव। दस अनुस्मृतियां अनुरूप स्मृति को अनुस्मृति कहा गया है। दस अनुस्मृतियाँ निम्न प्रकार हैं। बुद्धानुस्मृति- भगवान् बुद्ध के अर्हत्व आदि गुणों का बार-बार स्मरण करना बुद्धानुस्मृति है। धर्मानुस्मृति- धर्म के विषय में बार-बार चिन्तन करना कि भगवान् बुद्ध का धर्म अच्छी तरह से कहा गया है, तत्काल फल देनेवाला है, कालान्तर में फल की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती, उसके विषय में दूसरों को बताया जा सकता है तथा विज्ञ पुरुषों द्वारा अपने आप जानने योग्य है।२०० संघानुस्मृति- स्रोतापत्ति आदि चार मार्गस्थ एवं चार फलस्थ पुद्गलों को संघ के नाम से जाना जाता है। ये श्रावक संघ श्रेष्ठ एवं उत्तम होते हैं। लोगों को इस श्रावकसंघ की पूजा से पुण्य लाभ होता है। इस संघ के सुप्रतिपन्न गुणों का पुनः पुनः स्मरण करना संघानुस्मृति है।०९ शीलानुस्मृति- अपने शील की अखण्डता, अक्षतता, निर्दोषता, निर्मलता आदि गुणों तथा उस शील को आधार करके मार्ग एवं फलपर्यन्त समाधि की प्राप्ति का पुनः पुनः स्मरण करना शीलानुस्मृति है।२० २ त्यागानुस्मृति- दूसरो को प्रसन्नता देनेवाले उस दान के गुणों का प्रीतिपूर्वक पुन:-पुन: स्मरण करना त्यागानुस्मृति है। देवतानुस्मृति- विभिन्न देवताओं के श्रद्धा, शील आदि गुणों के अस्तित्व का अनुस्मरण करना देवतानुस्मृति है।२०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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