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________________ ६६ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन कसिण, दस अशुभ, दस अनुस्मृतियाँ, चार ब्रह्मविचार, चार आरूप्य, एक आहार में प्रतिकूल संज्ञा तथा चतुर्धातु व्यवस्थान।१९२ दस कसिण ___कसिण का अर्थ होता है-सकल, सम्पूर्ण। इसके दस प्रकार निम्न हैंपृथ्वीकसिण, आपोकसिण, तेजोकसिण, वायुकसिण, नीलकसिण, पीतकसिण, लोहितकसिण, अवदातकसिण, आलोककसिण तथा परिच्छिन्नाकाश कसिण। मज्झिमनिकाय और दीघनिकाय में आलोक और परिच्छिन्नाकाश के स्थान पर आकाश और विज्ञान परिगणित है। १९३ पृथ्वीकसिण- इस कसिण की भावना के लिए योगी को चार अंगुल के फैलाव वाले अरुण रंग की मिट्टी के गोले का ध्यान करना पड़ता है। १९४ आपोकसिण- इस कसिण में नीला, पीला, लाल, या अवदात वर्ण के जल को ग्रहण न करके शुद्ध जल को कर्मस्थान के रूप में ग्रहण किया जाता है।१९५ तेजोकसिण- इस कसिण में सखी लकड़ी में आग जलाकर चमड़े, कपड़े या चटाई में चार अंगुल का छेद करके उसमें से अग्नि को देखते हुए ध्यान किया जाता है।१९६ वायुकसिण- वायुकसिण में दृष्टि द्वारा हिलते हुए पेड़ के पत्ते अथवा स्पर्श द्वारा वायु ध्यान करने का विधान है।१९० नील-पीत आदि कसिण-इसमें शेष नील, पीत आदि कसिणों में उसी रंग के पुष्प, वस्त्र आदि में चित्त को स्थिर करने का विधान है।१९८ दस अशुभ अशुभ से अभिप्राय कुत्सित अथवा मृत शरीर से है। अशुभ कर्मस्थान प्रायः श्मशान में ही मिलते हैं। मृत्योपरान्त शव के आकार में अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं, उन विकारों से शव की अवस्थायें बदलती रहती हैं। शव की बदलती हई उन विभिन्न अवस्थाओं की अपेक्षा से ही दस अशुभ कर्मस्थानों को स्वीकार किया गया है। दस अशुभ कर्मस्थान निम्नलिखित है १. अद्धमातक- फूला हुआ शव । २. विनीलक- श्वेत, रक्त आदि वर्गों से मिश्रित लाल वर्णवाला मृत शरीर। ३. विपूयक- पीब बहता हुआ शरीर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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