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________________ योग की अवधारणा : जैन एवं बौद्ध ५५ सा है? हे सिंह! मैं कहता हूँ पापकारक अकुशल धर्मों को तपा डाला जाए, जिसके पापकारक अकुशल धर्म गल गये, फिर उत्पन्न नहीं हुए, उसे मैं तपस्वी कहता हूँ।१५३ इसी प्रकार कासिभारद्वाजसुत्त में भी तथागत ने कहा है- मैं श्रद्धा का बीज बोता हूँ, उस पर तपश्चर्या की वृष्टि होती है। शरीर वाणी से संयत रहता हूँ और आहार से नियमित रहकर सत्य द्वारा मैं मन-दोषों की गोड़ाई करता हूँ।१५४ इससे यह स्पष्ट होता है कि बुद्ध का जीवन कठोरतम तपस्याओं से भरा हुआ है। बुद्ध ने प्रारम्भ में शरीर दमन के लिए तप साधना की थी, परन्तु जब वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके तब उन्होंने मध्यममार्ग का प्रतिपादन किया। डॉ० राधाकृष्णन के शब्दों में - "यद्यपि बुद्ध ने कठोर तपश्चर्या की आलोचना की, फिर भी यह आश्चर्यजनक है कि बौद्ध-श्रमणों का अनुशासन किसी भी ब्राह्मण ग्रन्थ में वर्णित अनुशासन (तपश्चर्या) से कम कठोर नहीं है।५५ बुद्ध ने कहा है कि किसी तप या व्रत के करने से कुशल धर्म बढ़ते हैं तो अकुशल धर्म घटते हैं। अत: इसे अवश्य करना चाहिए।१५६ यही कारण है कि ब्रह्मचर्य, आर्यसत्यों का दर्शन, निर्वाण का साक्षात्कार आदि के साथ तप को भी उत्तम मंगल कहा गया है। तप के प्रकार बौद्ध परम्परा में तप के प्रकार का कोई स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता है। लेकिन तप की श्रेष्ठता और निकृष्टता को बताते हुए उसके चार प्रकार बताये गये हैं१. आत्मन्तप - इसके अन्तर्गत वे तपस्वी आते हैं जो स्वयं को कष्ट देते हैं, लेकिन दूसरे को नहीं। २. परन्तप- इसमें बधिक एवं पशुबलि देनेवाले आते हैं, जो दूसरों को ही कष्ट देते हैं। ३. आत्मन्तप-परन्तप - ये प्रथम एवं द्वितीय का मिश्रित रूप है, यथा तपश्चर्या सहित यज्ञ-याज्ञ करनेवाले । ४. न आत्मन्तप-न परन्तप- इसके अन्तर्गत वे लोग आते हैं जो न स्वयं को कष्ट देते हैं और न दूसरों को ही कष्ट देते हैं। बुद्ध इनमें से चौथे प्रकार के तप को श्रेष्ठ मानते हैं जो मध्यम प्रतिपदा सिद्धान्त पर आधारित है। योग के तीन प्रकार (त्रिविध योग) बौद्ध-दर्शन में भी त्रिविध योग-साधना की व्यवस्था है- शील, समाधि और प्रज्ञा। जिसे बौद्ध परम्परा में त्रिरत्न कहा गया है। यह अष्टांगिक मार्ग को ही प्रस्ततु करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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